सुश्री इन्दिरा किसलय
☆ पाँच क्षणिकाएं ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆
1-
अब तक थी
कोने में पड़ी,
सहसा
अपने कद से
बड़ी हो गई
रेवड़ी ।।
2-
हमने देखा
अमीरों की गरीबी से
जन्म
लेती है,
गरीबी की रेखा ।।
3-
स्वर्णकुंभ में,
अमृत जैसा
विष
रखा है,
बहुतों ने चखा है!
4-
खोल के देखो
जादू की पुड़िया ,
आका के बाग में
आज भी
उड़ती है
सोने की चिड़िया।।
5-
एक टन झूठ
एक ग्राम सच
चाँदी की थाली में
सोने का
चम्मच।।
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© सुश्री इंदिरा किसलय
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈