डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका भावप्रवण गीत – मैं तो जला दुपहरी जैसा…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 155 – गीत – मैं तो जला दुपहरी जैसा…
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मैं तो जला दुपहरी जैसा
तुम ही रूठे रहे छाँव से,
यह तो वैसा हुआ कि जैसे
मोह नहीं बदनाम गाँव से।
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अनदेखा कर गई चाँदनी, ताने कसने लगे सितारे।
अँधियारे से आँख मिलाई, पहुँची नाव भँवर के द्वारे
तुम पर कुछ इल्जाम न आये, इसीलिये हट गया ठाँव से।
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कैसे तुम्हें सादगी रुचती, तुम्हें नशा है तड़क भड़क का
तुम राही हो राजपथों के, मैं पत्थर सुनसान सड़क का
अभी खुली साँसों की आँखें, तुमने कुचला नहीं पाँव से।
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तुमसे नहीं शिकायत कोई, मुझे वक्त का इतंजार है
खुद कर देना सही फैसला, कौन कहाँ तक गुनहगार है।
खुद को तो नीलाम कराया, तुम्हें बचाता रहा दाँव से।
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© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
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