श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जो साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं।
आज प्रस्तुत है व्यंग्यकार – डा महेंद्र अग्रवाल जी के व्यंग्य संग्रह – “व्यंग्य के अखाड़े और बाज” पर चर्चा।
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 149 ☆
☆ “व्यंग्य के अखाड़े और बाज” – व्यंग्यकार – डा महेंद्र अग्रवाल ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆
कृति चर्चा
व्यंग्य संग्रह – व्यंग्य के अखाड़े और बाज
व्यंग्यकार – डा महेंद्र अग्रवाल
प्रकाशक – सर्व प्रिय प्रकाशन, नई दिल्ली
मूल्य – १५० रु, पृष्ठ – १२४
☆ पाठक को कचोटती उसका भोगा हुआ दिखाती रचनायें… विवेक रंजन श्रीवास्तव ☆
डा महेंद्र अग्रवाल व्यंग्य में छोटे शहर से बड़ा धमाका करते व्यंग्यकार हैं। संग्रह के अंतिम आलेख “व्यंग्य के अखाड़े और उनके बाज” में व्यंग्य के क्षेत्र में वर्तमान गुटबाजी पर कटाक्ष करते हुये लेखक ने लिखा है कि… ज्यादातर खेमे या गिरोह बड़े शहरों में ही ज्यादा पनपते हैं… यदि किसी दूकान का मालिक सम्मानो का प्रायोजक हो तो उसकी कीमत बढ़ जाती है… ऐसे परिवेश में डा महेंद्र अग्रवाल गुट निरपेक्ष तटस्थ भाव से बस विशुद्ध व्यंग्य के पक्ष में खड़े हैं। उन्होंने संपादन भी किया है, आकाशवाणी और टी वी पर भी रचनापाठ किया है। व्यंग्य के सिवाय गजलें भी लिखी हैं। म प्र साहित्य अकादमी सहित अनेकानेक संस्थाओ से सम्मान के रूप में उन्हें साहित्यिक स्वीकार्यता भी मिली है।
कम ही लेखक होते हैं जिन्हें उनके जीवन काल में ही निर्विवाद रूप से सर्व स्वीकार किया गया है। अपने सहज स्वभाव के चलते गिरीश पंकज को यह श्रेय प्राप्त है। उन्होंने इस किताब की भूमिका लिखी है। वे लिखते हैं कि आज जब ऐसा बहुत कुछ लिखा जा रहा है जिसे व्यंग्य के खाते में नहीँ डाला जा सकता, तब इससंग्रह के व्यंग्य, मानकों पर खरी रचनायें हैं। संग्रह की सारी रचनायें पढ़ने के बाद मैं गिरीश जी से इस बात पर असहमत हूं कि इस संग्रह की रचनायें कथा शैली में हैं। यह सही है कि सेवाराम बनाम राजाराम जैसी कुछ रचनायें जरूर कथा शैली में गढ़ी गई हैं। स्वयं एक व्यंग्यकार होने के नाते मैं कह सकता हूं कि शुद्ध व्यंग्य लेखों में कटाक्ष के संग लक्ष्य मनतव्य के निहितार्थ पाठकों तक संप्रेषित करना कथा व्यंग्य की वनिस्पद ज्यादा चैलेंजिंग होता है, जिसे डा महेंद्र अग्रवाल ने बखूबी निभाया है। किताब में लेखकीय प्राक्थन को ही उन्होंने पूर्वालाप शीर्षक देकर व्यंग्य के तीर चलाने शुरू कर दिये हैं। पराई शवयात्रा में, शिथिलांग शिविर एक नवाचार, किस्सा ए चोट, आदि व्यंग्य लेख अनुभूत घटनाओ के कटाक्षो से भरे रोचक पठनीय वर्णन हैं। इन्हें पढ़कर पाठक को रचना कचोटती है। उसे अहसास होता है कि अरे यह तो उसका भी भोगा हुआ है जिसे पुनः दिखाती रचनायें पढ़कर पाठक आनंदित होता है। लक्ष्य विसंगति पर प्रहार कर डा महेंद्र अग्रवाल समाज के प्रति अपने लेखकीय दायित्व का निर्वाह करते हैं। पर मेरी चिंता यह है कि आज व्यंग्य की ऐसी रचनाओ को पढ़कर हमारा मट्ठर समाज त्रुटियों में परिष्कार की जगह मजे लेकर रचना परे कर फिर उसी सब मे निरत बन रहता है।
विभिन्न व्यंग्य लेखों से कुछ तीखे शब्द बाण जिन्हें मैने पढ़ते हुये लाल स्याही से अंडर लाइन किया है, उधृत हैं… लेखन के सम्मान और लेखक की प्रसिद्धि के लिये लेखक का समय रहते मरना बेहद जरूरी है।
…. जिन वक्तव्य वीरों के मुंह में खुजली थी वे शोक सभा की तैयारियों में लग गये।
… अहो ग्राम्य जीवन भी क्या है ? कहने वाले कवि की आत्मा अभी धरती पर उतरती तो उनके लिये निर्धारित भोज स्थल पर गतिविधियों को देखकर विस्मित हो जाती।
… चेनलों की देखने लायक प्रतिस्पर्धा में चीखने चिल्लाने में कोई किसी से पीछे नहीं है, सभी एक दूसरे से आगे बढ़ते जा रहे हैं।
पुस्तक में संग्रहित सभी बाईस लेखों के लगभग प्रत्येक पेराग्राफ में कम से कम एक ऐसे ही व्यंग्य चातुर्य का संदर्भ सहित साहित्यिक रसास्वादन करने के लिये आपको व्यंग्य के अखाड़े और बाज पढ़ने की सलाह है। शीर्षक में अखाड़ेबाज को विग्रहित किया गया है यही शाब्दिक कलाबाजी अंदर लेखों में भी आपको प्रभावित करेगी इसकी गारंटी है।
चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
समीक्षक, लेखक, व्यंगयकार
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈