श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “नई पीढ़ियाँ…” ।)
जय प्रकाश के नवगीत # 25 ☆ नई पीढ़ियाँ… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
सीख बड़ों की
टँगी अरगनी
बंजर जोतें ऩई पीढ़ियाँ ।
कटा हुआ दिन
ठूँठ पेड़ का
सूरज डूबा
बुढ़ा मेंड़ का
रात उनींदी
आलस भरती
उतर रही कुलवधू सीढ़ियाँ ।
खेत उठाकर
माटी कूटे
बाँध रहा है
रिश्ते टूटे
बरगद दादा
रगडे़ं दिन भर
बैठे बैठे फटी एड़ियाँ ।
खरपत उपजी
घर आँगन में
खड़ी दिवारें
सबके मन में
गाय रँभाती
बँधी खूँट से
बछिया लाँघे रोज ड्योढ़ियाँ ।
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© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)
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