श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है संतोष के दोहे. आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 185 ☆
☆ – संतोष के दोहे – ☆ श्री संतोष नेमा ☆
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आजादी
आजादी मिलती नहीं, बिना किये संघर्ष
वीरों के बलिदान से, मना रहे हम हर्ष
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उत्कर्ष
प्रगति सदा होती रहे, जीवन में हो हर्ष
जब हो सच्ची साधना, होता तब उत्कर्ष
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लोकतंत्र
कर्तब्यों को भूल कर, याद रखें अधिकार
लोकतंत्र में अब दिखे, इसकी ही भरमार
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मूल्य
आज समय के साथ अब, गिरते नैतिक मूल्य
स्वारथ बस भूले सभी, जीवन बहुत अमूल्य
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तिरंगा
पूरे जग में छा रहा, खूब तिरंगा आज
आन-बान अरु शान से, हमको उस पर नाज़
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© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
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