श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल “तयशुदा है मुलाक़ात उस नाज़नीन से…”)

? ग़ज़ल # 95 – “तयशुदा है मुलाक़ात उस नाज़नीन से…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

जो हमें मिले वो दिल खुले ही नहीं,

जो खुल पाते वो दिल मिले ही नहीं।

ज़िंदगी गुमसुम लिबास में लिपटी रही,

किताब के कुछ सफ़े तो खुले ही नहीं।

तेज बारिश में अरमान सारे बह गए,

वक़्ते ज़रूरत दो बूँद टपके ही नहीं।

हमारे अपने बिछाते रहे राहों में काँटे,

परायों से कोई शिकवे गिले ही नहीं।

ताउम्र जिन्हें अपने सपने कहते रहे,

ख़्वाब शायद कभी अपने थे ही नहीं।

रिश्ते भी अब सड़े पत्तों से गलने लगे,

यक़ीनन रिश्तेदार कभी वे थे ही नहीं।

आँसुओं का भी लम्बा सिलसिला रहा,

बारिश में बहे किसी को दिखे ही नहीं।

एक झलक दिखा कर छुप गई माशूका,

हिल गए  ‘आतिश’ ख़ाली डरे ही नहीं।

तयशुदा है  मुलाक़ात उस नाज़नीन से,

साथ ले जाएगी वो पड़ेगी गले ही नहीं।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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