श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण रचना कर्म ही हैं हमारी विरासत…। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 187 ☆

☆ कर्म ही हैं हमारी विरासत☆ श्री संतोष नेमा ☆

कभी  हमें  भी आजमा  कर  देख

दर्द  दिल  के  हमें  बता  कर  देख

इश्क़ होता है कैसा समझ जाओगे

दिल  हम  से  जरा  लगा  कर देख

वक्त ने हमको सताया है बहुत

दर्द गमों  का पिलाया  है बहुत

हम  गैरों   की  बात  क्या  करें

अपनों ने ही हमें रुलाया है बहुत

हम उनके तलबगार होकर रह गए

बिन उनके बे-करार होकर रह गये

वो समझ सके ना रवायत इश्क की

हम  फूल थे  अंगार  होकर  रह गए

मैं सब  के लिए  प्यार  लाया हूं

प्रेम की  शीतल  बहार लाया हूँ

कभी दिल  से मुझे  समझियेगा

प्रकृति का सुंदर उपहार लाया हूं

एक दिन दुनिया से गुजर जाएंगे

न  जाने  किसे  कब याद आएंगे

कर्म ही हैं हमारी विरासत संतोष

जो  सबको  हमारी याद दिलाएंगे

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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