श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपके “स्वयं कभी कविता बन जाएँ…”।)
☆ तन्मय साहित्य #204 ☆
☆ स्वयं कभी कविता बन जाएँ… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆
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होने, बनने में अन्तर है
जैसे नदिया और नहर है।।
कवि होने के भ्रम में हैं हम
प्रथम पंक्ति के क्रम में हैं हम
मैं प्रबुद्ध हूँ आत्ममुग्ध मैं
गहन अमावस तम में हैं हम।
तारों से उम्मीद लगाए
सूरज जैसे स्वप्न प्रखर है……
जब, कवि हूँ का दर्प जगे है
हम अपने से दूर भगे हैं
उलझे शब्दों के जंगल में
और स्वयं से स्वयं ठगे हैं।
भटकें बंजारों जैसे यूँ
खुद को खुद की नहीं खबर है।……
कविता के सँग में जो रहते
कितनी व्यथा वेदना सहते
दुःखदर्दों को आत्मसात कर
शब्दों की सरिता बन बहते,
नीर-क्षीर कर साँच-झूठ की
अभिव्यक्ति में सदा निडर है।……
यह भी मन में इक संशय है
कवि होना क्या सरल विषय है
फिर भी जोड़-तोड़ में उलझे
चाह, वाह-वाही, जय-जय है
मंचीय हाव-भाव, कुछ नुस्खे
याद कर लिए कुछ मन्तर है।……
मौलिकता हो कवि होने में
बीज नए सुखकर बोने में
खोटे सिक्के टिक न सकेंगे
ज्यों जल, छिद्रयुक्त दोने में
स्वयं कभी कविता बन जाएँ
शब्दब्रह्म ये अजर-अमर है।…..
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© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈