श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “खुलकर गीत गाएँ…” ।)
जय प्रकाश के नवगीत # 31 ☆ खुलकर गीत गाएँ… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
मर्सिया पढ़ने से अच्छा
आओ खुलकर गीत गाएँ।
माना कठिन है समय
पर उसका ही रोना
कहाँ की है समझदारी
कुछ तो लिखो ऐसा कि
घटते हौसलों में भी
घिरे न यह ज़िंदगी सारी
दर्द को ढोने से अच्छा
सुख को काँधों पर उठाएँ।
धूप से गठजोड़ कर
हमने खरीदीं रात
मेहनत बेचकर काली
शब्द के घनघोर वन
में बजाते हैं खड़े हो
बस ज़ोर से ताली
क्या नियति है यही अपनी
आओ तोड़ें वर्जनाएँ ।
दर्द की बैसाखियों पर
चले कब तक ज़िंदगी
उमर घटती जा रही है
जोड़ कर हासिल हुई
आँसुओं के हाथ से
खुशी बँटती जा रही है
जो मिला जैसा उसी में
तलाशें संभावनाएँ ।
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© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)
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