श्री आशिष मुळे
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 22 ☆
☆ कविता ☆ “रावण तो अभी जिंदा हैं…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆
पुतलों में तो वैसे ही जान नहीं
पुतला-कारों में बारूद भरा पड़ा है
आज राम है या नहीं पता नहीं
राक्षस तो अखबारों के पन्नों पर है
क्योंकि… रावण तो अभी जिंदा है…
जान इस रावण की
नाभि में नहीं है
इसकी जान, जिसमें नहीं
ऐसा आज कोई चिन्ह ही नहीं है
क्योंकि… रावण तो अभी जिंदा है…
कहानियों और चिन्हों से
लबालब आज लंकाए हैं
जहां खौफ से लथपथ
हृदय और मन है
क्योंकि… रावण तो अभी जिंदा है…
कौन दे रहा है जान
ये रावण क्या खाता है
क्या ग़लतफहमी यही
हमारे खेत का अनाज है
क्योंकि… रावण तो अभी जिंदा है…
तुम्हारा राम चौखट के अंदर है
चौखट के बाहर तो घना अंधेरा है
गर कभी चौखट लांघनी पड़े
समझ लो हरण तुम्हारा तय है
क्योंकि… रावण तो अभी जिंदा है…
गर रावण को मिटाना है
तीर हमें ही चलाने हैं
कहानियों की चौखट लांघकर
जान चिन्हों की निकालनी है
क्योंकि… रावण तो अभी जिंदा है…
मानवता के दंडकारण्य में अज्ञान अंधेरा है
जिसमें अंधविश्वास यही मूल शिकारी है
इक दिन सूरज निकलेगा, मुझे ये विश्वास है
मगर आज का राम तुम्हे ही बनना है…
क्योंकि… रावण तो अभी जिंदा है…
© श्री आशिष मुळे
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈