श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपके प्रिय अनुज स्व विनोद शुक्ल जी की स्मृति में आपकी एक भावप्रवण रचना “आँखें अश्रु बहा रहीं…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 106 – आँखें अश्रु बहा रहीं… ☆
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आँखें अश्रु बहा रहीं, यादें अनुज विनोद।
कदम मिला कर तुम चले,मन आह्लाद प्रमोद।।
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भाई थे हम चार पर, जोड़ी थी अनमोल।
कंधे दोनों के सबल,भवन रहा था बोल।।
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मिलजुल सपने बुन लिये, उठालिया सब भार।
मात-पिता की आस पर, पूरा था अधिकार।।
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कानों में वह गूँजती, भाई की आवाज।
चलो बड़े भैया अभी, निपटाते कुछ काज।।
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बिगड़े जितने काम थे, उनको रहे सुधार।
मात-पिता के दीप पर, चढ़ा रहे थे हार।।
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टूटा हृदय विछोह से, चैन नहीं दिन-रात।
कदम-कदम पर साथ था, तुम संबल थे भ्रात।।
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अविरल आँसू कोर से, छलक रहे दिन-रात।
मुझे अकेला छोड़ कर, दिया बड़ा आघात।।
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प्रेम-नेह निश्चल बसा, कभी दिया ना क्लेश।
छोटा जीवन जी गया, बनकर के दरवेश।।
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© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
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