श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “शहर के मकान…” ।)

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 32 ☆ शहर के मकान… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

आँगन को तरस गए

शहर के मकान।

 

खिड़कियों पर लेटी

थोड़ी सी धूप

दरवाज़े पर ठिठके

सूरज के रूप

 

छज्जों पर झुलस गए

लतिका के प्रान।

 

सटे-सटे घर हैं पर

दूर-दूर मन

अपने अपनेपन में

सभी हैं मगन

 

प्रीति गंध बिना छुए

फूलों के गान।

 

भटकता सा हर दिन

फ़ुरसत की रात

परिचित सी चुप्पियाँ

बहरे हालात

 

बोझिल से पंख लिए

हवा पर उड़ान ।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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