आचार्य भगवत दुबे
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – बढ़ने लगी शुगर…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 30 – बढ़ने लगी शुगर… ☆ आचार्य भगवत दुबे
व्याधिग्रस्त दिखते
गाँवों से ज्यादा आज शहर
शक्कर महँगी किन्तु
खून में बढ़ने लगी शुगर
करते नहीं मशक्कत
बैठे-बैठे खाते हैं
खूब तेल घी खाकर
अपनी तोंद बढ़ाते हैं
क्यों चिन्ता रहती
भर देते इनकम टैक्स अगर
जो महनतकश
उन्हें न कोई रोग सताते हैं
चर्बी उन्हें न चढ़ती
रूखा-सूखा खाते हैं
उनके भूखे पेट
हजम कर जाते हैं पत्थर
भले गरीबी, विपदाओं से
घिरी रहे बस्ती
लोक धुनों में नाचें-गायें
करें श्रमिक मस्ती
बंजर में भी फसल उगाते
इनके बैल बखर
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© आचार्य भगवत दुबे
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈