श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी समसामयिक घटना पर आधारित एक भावप्रवण कविता “# परिनिर्वाण दिन #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 157 ☆

☆ # परिनिर्वाण दिन #

(बाबासाहेब डॉ भीमराव आंबेडकर जी के परिनिर्वाण दिन के निमित्त उस महामानव को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि)

आंख भर आती है,जब याद तुम्हारी आती है

है महामानव यह तिथि हमें कितना रूलाती है

 

जब जीवन था दूभर, भयावह चुभते साये थे

सब तरफ था तिरस्कार,  कैसा जीवन पाये थे

पग पग पर अपमान,  हम जुल्म से घबरायें थे

आवाज़ नहीं थी होंठों पर,  सामंतों के सताये थे

स्याह अंधेरे में तुम,  सूरज बनकर आए थे

काले मेघों को चीरकर,  नया सवेरा लाए थे

वो शोषित, पीड़ित जनता,  आज अश्रु धारा बहाती है

आंख भर आती हैं, जब याद तुम्हारी आती है

 

हम तो थे पेड़ सूखे,  तुमने देह में प्राण फूंके

रक्त कोशिकाओं में हलचल हुई, तुमने जब देखा छुंके

हम थे अज्ञानी, विवश,  हम लाचार थे रूखे

तुमने शिक्षा की ज्योति जलाई, हम थे शिक्षा के भूखें

जीवन में बदलाव आ गया,  आंखों से हट गए धूंके

शिक्षा शेरनी का दूध है,  बोलने लगे जो थे मुके

रूदन देख जन सैलाब का, आज धरती भी थर्राती है

आंख भर आती है, जब याद तुम्हारी आती हैं

 

अब हमें अधिकार मिले हैं, पर दिन बीते नहीं संघर्षो के

अब मांगने लगे हैं हक अपना, जो वंचित थे वर्षों से

खुशियां आई जीवन में, दिन लौटे हैं हर्षों के

सपने देख रहे हैं सब, अपने अपने उत्कर्षों के

भेदभाव मिटा नहीं है पर, अर्थ बदलें है स्पर्शो के

हमें संगठित होना होगा, वर्ना आयेंगे दिन अपकर्षों के

यह परिनिर्वाण की बेला, क्या सामाजिक क्रांति लाती हैं ?

आंख भर आती है, जब याद तुम्हारी आती है

हे महामानव यह तिथि हमें कितना रूलाती हैं

 © श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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