श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जो साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं।
आज प्रस्तुत है श्री अश्विनी कुमार दुबे जी द्वारा रचित पुस्तक – “स्वप्नदर्शी” (भारत रत्न मोक्षगुण्डम विश्वेश्वरैया जी के जीवन पर केंद्रित उपन्यास) पर चर्चा।
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 153 ☆
☆ “स्वप्नदर्शी” (भारत रत्न मोक्षगुण्डम विश्वेश्वरैया जी के जीवन पर केंद्रित उपन्यास) – श्री अश्विनी कुमार दुबे ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆
कृति चर्चा
पुस्तक चर्चा
पुस्तक – “स्वप्नदर्शी” (भारत रत्न मोक्षगुण्डम विश्वेश्वरैया जी के जीवन पर केंद्रित उपन्यास)
लेखक – श्री अश्विनी कुमार दुबे
प्रकाशक – इंद्रा पब्लिशिंग हाउस, भोपाल
मूल्य – २५० रु, वर्ष २०१७
पृष्ठ – २२४
चर्चा… विवेक रंजन श्रीवास्तव, भोपाल
☆ पुस्तक चर्चा – स्वप्नदर्शी … विवेक रंजन श्रीवास्तव ☆
मन से अश्विनी कुमार दुबे व्यंग्यकार हैं, उपन्यासकार और कथाकार हैं। दुबे जी को म प्र साहित्य अकादमी, भारतेंदु पुरस्कार, अम्बिका प्रसाद दिव्य पुरस्कार, स्पेनिन सम्मान आदि से समय समय पर सम्मानित किया गया है। यद्यपि रचनाकार का परिचय किसी पुरुस्कार या सम्मान मात्र से बिल्कुल नहीं दिया जा सकता। दरअसल सच ये होता है कि श्री अश्विनीकुमार दुबे के रचना कर्म के समदृश्य बहुविध लेखन करने वाले गंभीर रचनाकर्मी का ध्यान पुरुस्कार और सम्मानो के लिये नामांकन करने की ओर नहीं जाता, वे अपने सारस्वत लेखन अभियान को अधिक वरीयता देते हैं। आजीविका के लिये अश्विनी कुमार दुबे अभियंता के रूप में कार्यरत रहे हैं। उनका रचनात्मक कैनवास वैश्विक रहा है। भारत रत्न मोक्षगुण्डम विश्वेश्वरैया जी के जीवन पर केंद्रित उनका उपन्यास “स्वप्नदर्शी” बहुचर्चित है। यह उपन्यास केवल व्यक्ति केंद्रित न होकर विश्वेश्वरैया जी के जीवन मूल्यों, संघर्ष और कार्य के प्रति उनकी ईमानदारी तथा निष्ठा को प्रतिष्ठित करता है। भगवान को भी जब रातों रात सुदामा पुरी का निर्माण करवाना हो तो उन्हें विश्वकर्मा जी की ओर देखना ही पड़ता है। बदलते परिवेश में भ्रष्टाचार के चलते इंजीनियर्स को रुपया बनाने की मशीन समझने की भूल घर, परिवार, समाज कर रहा है। इस आपाधापी में अपना जमीर बचाये न रख पाना इंजीनियर्स की स्वयं की गलती है। समाज व सरकार को देखना होगा कि तकनीक पर राजनीति हावी न होने पावे। मानव जीवन में विज्ञान के विकास को मूर्त रूप देने में इंजीनियर्स का योगदान रहा है और हमेशा बना रहेगा। किन्तु जब अश्विनी जी जैसे अभियंता लिखते हैं तो उनके लेखन में भी वैज्ञानिक दृष्टि का होना लेखकीय गुणवत्ता और पाठकीय उपयोगिता बढ़ाकर साहित्य को शाश्वत बना देता है।
अश्विनी जी के विश्वेश्वरैया जी पर केंद्रित उपन्यास “स्वप्नदर्शी” में पाठक देख सकते हैं कि किस तरह वैचारिक तथ्य तथ्यो को भाषा, शैली और शब्दावली का प्रयोग कर अश्विनी जी ने अपनी लेखकीय प्रतिभा का परिचय दिया है। उन्होंने विषय वस्तु को शाश्वत, पाठकोपयोगी, और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया है। यह जीवनी केंद्रित उपन्यास वर्ष २०१७ में प्रकाशित हुआ है अर्थात पाठक को इसमें लेखन यात्रा में एक परिपक्व लेखक की अभिव्यक्ति देखने मिलती है। इसके लेखन के दौरान अश्विनी जी मधुमेह और उच्च रक्तचाप की बीमारियों से ग्रसित रहे हैं पर उन्होंने योजनाबद्ध तरीके से उपन्यास की सामग्री संजोई और कल्पना के रंग भरकर उसे जीवनी परक उपन्यास के रोचक फार्मेट में पाठको के लिये प्रस्तुत किया है। मेरे पढ़ने में आया स्वप्नदर्शी विश्वेश्वरैया जी पर केंद्रित पहला ही उपन्यास है। किसी के जीवन पर लिखने हेतु रचनाकार को उसके समय परिवेश और परिस्थितियों में मानसिक रूप से उतरकर तादात्म्य स्थापित करना वांछित होता है। स्वप्नदर्शी में अश्विनी जी ने विश्वेश्वरैया जी के प्रति समुचित न्याय करने में सफलता पाई है। उपन्यास से कुछ पंक्तियां उधृत हैं, जिन से पाठक अश्विनी कुमार दुबे के लेखन में उनकी वैज्ञानिक दृष्टि की प्रतिछाया का आभास कर सकते हैं।
” तुम्हें खुली आँखों से देखना और जिज्ञासु मन से समझना है। अपनी जिज्ञासा को कभी मरने मत देना “
” सिर्फ कृषि कार्यों पर निर्भर रहकर हम अपनी गरीबी दूर नहीं कर सकते, निर्धनता से लड़ने के लिये हमें अपने उद्योग और व्यापार को बढ़ाना होगा “
” इंग्लैँड में एक प्रतिष्ठित नागरिक ने विश्वेश्वरैया जी से उपहास की दृष्टि से पूछा जब सारी दुनिया अस्त्र शस्त्र बना रही थी, तब अपका देश क्या कर रहा था ? विश्वेश्वरैया जी ने तपाक से उत्तर दिया तब हमारा देश आदमी बना रहा था। उन्होंने स्पष्ट किया कि विवेकानंद, रवींद्रनाथ टैगोर, महात्मा गांधी इसी दौर के भारतीय हैं जिन्होंने दुनिया को शाश्वत दिशा दी है। विश्वेश्वरैया जी के इस जबाब का उस अंग्रेज के पास कोई उत्तर नहीं था “
” चमत्कारों में मेरा भरोसा नहीं है। मैं आदमी के हौसलों का कायल हूं। मैने एक स्थान देखा है जहाँ विशाल बांध बनाया जा सकता है ” …. ये मैसूर के निकट सुप्रसिद्ध कृष्णराज सागर बांध के विश्वेश्वरैया जी द्वारा किये गये रेकनाइसेंस सर्वे का वर्णन है।
“शेष अंत में”, “जाने अनजाने दुख” और “किसी शहर में” स्वप्नदर्शी के अतिरिक्त अश्विनी कुमार दुबे के अन्य उपन्यास हैं। यह पठनीय उपन्यास है।
चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
समीक्षक, लेखक, व्यंगयकार
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈