श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपके “प्रभाव…”।)
☆ तन्मय साहित्य #208 ☆
☆ प्रभाव… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆
कुछ बातें, जो उसके
संस्कारगत
सोच के विपरीत थी
के बावजूद
लंबे समय से
साध रखी थी चुप्पी
प्रसंगवश एक दिन
कुछ देर को जुबान क्या खुली
घेर लिया गया वह
अपनों के द्वारा
लगा..
दूध में अनचाहे गिर गई
खटास,
और पल भर में
बदल गई मिठास संबंधों की।
अपने पर किए गए
एहसानों व तर्कों के
वार से परास्त
उसने
फिर एक बार
लगा लिया ताला मुँह पर
फेंक दी चाबी
किसी अनजानी जगह
यह जानकर कि,
अधुनातन हवाओं का दबाव
खुद के प्रभाव से
कहीं अधिक भारी है।
वह घर का सबसे बड़ा था
बिना किसी दुर्भावना के
अच्छे के लिए लड़ा था
पर छोटे तो
आखिर होते ही हैं अबोध
भले ही वे विरोध में हो
फिर भी अच्छे ही होते है।
अब वह अनन्य भाव से
स्वयं में रमा है
जारी जीवनचक्रीय
परिक्रमा है।
☆
© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈