(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – धन तेरस।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 245 ☆
लघुकथा – धन तेरस
क्या हुआ आज त्यौहार के दिन मुंह क्यों लटकाये हुये हो, काम वाली मीना के चेहरे को पढ़ते हुये बरखा ने उससे पूछा। दुखी स्वर में अपने कान दिखाते हुये धीमे स्वर में मीना बोली, मैडम जी आज धन तेरस के दिन मुझे कान की बाली गिरवी रखनी पड़ी। क्यों बरखा ने त्वरित प्रति प्रश्न किया ? पुलिस वाले ने लड़के की मोटर सायकिल जब्त कर ली थी क्योंकि बेटा गाड़ी तेज चला रहा था। पांच हजार देने पड़े बाली गिरवी रखकर। त्यौहार मनाने के लिये जबरन वसूली कर रहे हैं।
बरखा ने संजो संजो कर पाँच हजार इकट्ठे कर रखे थे कि धन तेरस पर कुछ खरीदी करूंगी। उसने पल भर कुछ सोचा और रुपये निकाल लाई, मीना को रुपये देते हुये बोली जाओ पहले अपनी बाली छुड़ा कर ले आओ, कल मुझे दिखाना जरूर। दिये जलाते हुये मैं तय नहीं कर पा रहा था कि धन तेरस किसने मनाया ? मीना के लडके ने, पोलिस वाले ने, काम वाली मीना ने या बरखा मैडम ने।
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