डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं भावना के दोहे…।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 210 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे … ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆
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नयन- नयन को ढूँढते, करें रतजगा आज।
आयेंगे प्रियतम मगर, बजेंगे मन में साज।।
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प्रियतम की आहट हुई, मन में उठी उमंग।
आ जाओ अब प्रिये तुम, साथ जिएंगे संग।।
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बनकर प्रहरी आज वो, खड़ा हुआ है द्वार।
प्रिय से कैसे हो मिलन, कैसे हो उद्धार।।
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मन को निर्मल रखो तुम, करो नहीं मलीन।
अंतर्मन की प्रेरणा, नहीं बनो तुम दीन।।
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परछाई आई अभी, मिलने को चुपचाप।
नहीं सुनाई दी हमें, उसकी तो पदचाप।।
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© डॉ भावना शुक्ल
सहसंपादक… प्राची
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