प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित एक भावप्रवण रचना – “राम लला का मंदिर मन हो” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ “राम लला का मंदिर मन हो” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
☆
एक साथ मिलकर बोलो सब, जय जय सियाराम
उद्घोष करो जयकारे का , जय जय सियाराम
अंतर्मन से , जिसने भी , जब जहाँ पुकारा
आजानुभुज ने दिया सहारा, जय जय सियाराम
खुद को धोखा देते नाहक, लाख जतन से पाप छिपाते
कमलनयन से छिपा न कुछ भी , जय जय सियाराम
केवट वाला भोलापन हो, सरयू के प्रवाह सा जीवन
कौशलेंद्र कृपालु हैं भगवन , जय जय सियाराम
काटें वे जीवन के बंधन , करें समर्पण राघव को मन
बस शबरी सा प्रेम करें हम , जय जय सियाराम
बने अयोध्या यह शरीर, राम लला का मंदिर मन हो
भक्ति करें किंचित हनुमत सी , तो ये मानव योनि सफल हो
जय राम जय राम , जय जय सियाराम
☆
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी भोपाल ४६२०२३
मो. 9425484452
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈