श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश।आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल “फ़िज़ा में लहराईं स्याह ज़ुल्फ़ें…” ।)
ग़ज़ल # 103 – “फ़िज़ा में लहराईं स्याह ज़ुल्फ़ें…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
☆
हेमंत संग गुलाबी आया मौसम,
शिशिर संग सर्दी लाया मौसम।
☆
दिन सिकुड़े और लम्बी हुई रातें,
सुबह रज़ाई में अलसाया मौसम।
☆
स्वेटर जैकेट दस्ताने और मफ़लर,
मोटी रज़ाई देख रिसयाया मौसम।
☆
सुलगे मुफ़लिस अलाव चौराहों पर,
बैठकों में हीटर ने गर्माया मौसम।
☆
साजन भर रहे अब ठंडी आहें,
व्हाट्सएप से दुलराया मौसम।
☆
सजनी पर चढ़ा आशिक़ी बुख़ार,
एन्फ़ील्ड पर चढ़ आया मौसम।
☆
फ़िज़ा में लहराईं स्याह ज़ुल्फ़ें,
टैंक फ़ुल कर दक दकाया मौसम।
☆
पेड़-पौधों पर छाई शबनमी धुँध,
देख विहंगम लहराया मौसम।
☆
सरे शाम लगा अम्बार ठेकों पर,
स्कॉच व्हिस्की बहकाया मौसम।
☆
सुख दुःख का है गरम ठंडा जोड़ा,
जगत का अज़ब सरमाया मौसम।
☆
आना-जाना दस्तूर कायनात का,
‘आतिश’ को देख गुर्राया मौसम।
☆
© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
भोपाल, मध्य प्रदेश
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈