श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “पकड़ लो, हाथ गिरधारी।)

?अभी अभी # 232 ⇒ पकड़ लो, हाथ गिरधारी… ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

बात आज की नहीं, कई बरसों पुरानी है, एक फिल्म आई थी शहनाई, जिसमें राजेंद्र कृष्ण का एक गीत रफी साहब की आवाज में था, जो सुनते सुनते, जबान पर चढ़ गया था ;

ना झटको, जुल्फ से पानी,

ये मोती फूट जाएंगे।

तुम्हारा कुछ ना बिगड़ेगा

मगर दिल टूट जाएंगे।।

सन् १९६४ की यह फिल्म थी, और हमने ज़ुल्फ और हुस्न जैसे शब्द केवल सुन ही रखे थे, इनके अर्थ के प्रति हम इतने गंभीर भी नहीं थे। आप चाहें तो कह सकते हैं, हम उदासीन की हद तक मंदबुद्धि थे। ऐ हुस्न, जरा जाग तुझे इश्क जगाए, जैसे गीत हमें जरा भी जगा ना सके, और शायद इसीलिए ये गीत हमें सुनने में तो अच्छे लगते थे, लेकिन हम कभी सुर में गा न सके। फिर भी हम यह मानते हैं कि सुर की साधना भी परमेश्वर की ही साधना है।

तब अखबारों में भी विज्ञापन आते थे, और जगह जगह लाउडस्पीकर पर फिल्मी कथावाचक फिल्मी धुनों पर अच्छे अच्छे भजन प्रस्तुत किया करते थे। संगीत अगर कर्णप्रिय हो, तो सुधी श्रोता के कानों में प्रवेश कर ही जाता है।।

महिलाएं कामकाजी हों या घरेलू, पूजा पाठ, व्रत उपवास और भजन सत्संग के लिए समय निकाल ही लेती है। शादी ब्याह हो या कोई मंगल प्रसंग, सत्य नारायण की कथा अथवा कम से कम भजन कीर्तन तो बनता ही है। महिलाओं की शौकिया और कम खर्चीली भजन मंडलियाॅं भी होती हैं, जो केवल एक ढोलक की थाप पर ऐसा समाॅं बाॅंधती हैं, कि देखते ही बनता है।

भजन और आरती संग्रह का साहित्य ही इनकी जमा पूंजी होता है। रात दिन गाते गाते इन्हें सभी भजन कंठस्थ हो चुके होते हैं।

गृह कार्य से निवृत्त हो, जब इनकी मंडली जमती है, तो कुछ ही समय में सभी देवताओं का आव्हान कर लिया जाता है। राम जी भी आना, सीता जी को भी साथ लाना। करना ना कोई बहाना बहाना।।

महिला संगीत तो आजकल विवाह समारोहों का एक आवश्यक अंग बन चुका है। खुशी का मौका होता है, गाना बजाना और डांस तो बनता ही है।

परिवार वालों की महीनों प्रैक्टिस होती है, एक एक गीत के लिए। इवेंट मैनेजमेंट का एक प्रमुख हिस्सा है महिला संगीत, कोई मजाक नहीं।

जो पुरुष ताउम्र कहीं नहीं नाचा, उसे उसकी पत्नी और बच्चे सबके सामने नचाकर ही मानते है। और गीत भी कैसा, लाल छड़ी, क्या खूब लड़ी, क्या खूब लड़ी।

पिछली रात आसपास की महिलाएं यूं ही घर में मिल बैठी तो बिना ढोलक के ही सुर निकलने लगे। महिलाओं का स्वर पुरुष के स्वर से अधिक मीठा और अधिक सुरीला होता है। अचानक एक भजन पर मेरा ध्यान चला गया, वही मेरी प्यारी धुन लेकिन कितने खूबसूरत बोल ;

पकड़ लो हाथ बनवारी

नहीं तो डूब जाएंगे।

तुम्हारा कुछ ना बिगड़ेगा

तुम्हारी लाज जाएगी।।

 

धरी है, पाप की गठरी

हमारे सर पे ये भारी।

वजन पापों का है भारी

इसे कैसे उठाएंगे।।

 

तुम्हारे ही भरोसे पर

जमाना छोड़े बैठे हैं।

जमाने की तरफ देखो

इसे कैसे निभाएंगे।।

 

दर्दे दिल की कहें किससे

सहारा ना कौन देगा।

सुनोगे आप ही मोहन

और किसको सुनाएंगे।।

 

फॅंसी है, भॅंवर में नैया

प्रभु अब डूब जाएगी।

खिवैया आप बन जाओ

तो बेड़ा पार हो जाए।।

 

पकड़ लो हाथ गिरधारी ..

कोई बुद्धि, दिखावे और प्रपंच का खेल नहीं, कोई बहस, विवाद, तर्क वितर्क नहीं, बस कुछ पल का बिना शर्त समर्पण है यह ;

सौंप दिया अब जीवन का सब भार तुम्हारे चरणों में।

अब जीत भी तुम्हारे चरणों में

और हार भी तुम्हारे चरणों में।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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