श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “मेहनत का मोती…।)

?अभी अभी # 233 ⇒ मेहनत का मोती… ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

जहां मेहनत है, वहां पसीना है, पसीने की हर बूंद किसी मोती से कम नहीं होती।

यूं ही नहीं किसी को लौह पुरुष और विकास पुरुष कहा जाता है, अरे कोई कारण होगा। श्रम में कैसी शर्म।

दफ्तर में हमारे एक सहयोगी थे मालवीय जी। सीधे सादे, गंभीर किस्म के, काम से काम रखने वाले, संकोची इंसान ! जो व्यक्ति जल्दी खुलता नहीं, उसके रोचक किस्सों का पिटारा बहुत जल्द खुल जाता है। कुछ साथी उन्हें दबी जुबान से मेहनत का मोती कहते थे। ऐसे रहस्य बहुत जल्द उजागर नहीं होते।।

देखादेखी हमने भी उनमें रुचि लेना शुरू कर दिया।

कुछ लोग परिश्रम से उपाधि हासिल करते हैं और कुछ को उपाधि मुफ्त में ही प्रदान कर दी जाती है। दादा, पंडित जी, गुरु जी, खलीफा पहलवान और डॉक्टर जैसी सम्मानजनक उपाधियां हमारे दफ्तरों में खुले आम बांटी जाती है, बिना हींग और फिटकरी के। और वे भी इसे ससम्मान ग्रहण कर लेते हैं।

लेकिन कुछ दबी जुबान की उपाधियां सार्वजनिक नहीं होती। बहुत हिटलर, खड़ूस, कंजूस मक्खीचूस, और दिलफेंक रोमियो होते हैं दफ्तरों में जिनमें कोई श्याणा कौआ होता है, तो कोई बहुत चलती रकम।।

हमारे रहस्यमयी मेहनत के मोती, मालवीय जी पर भी रिसर्च की गई तो पता चला, मोती उनका बचपन का नाम था, क्योंकि घर में एक हीरा पहले ही पैदा हो गया था। जन्म से ही उनके चेहरे पर चेचक के दाग थे, जिनका मेहनत से कोई सरोकार नहीं था। उन्हें मोती नाम पसंद नहीं था, क्योंकि मोहल्ले में सड़क पर और भी उनके हमनाम घूमा करते थे। शायद इसीलिए दफ्तर के रेकॉर्ड में उनका नाम एम. एल.मालवीय, यानी मांगीलाल मालवीय था। इस नाम और संबोधन से उन्हें रत्ती भर भी आपत्ति नहीं थी।

जब भी हम मालवीय जी को देखते, हमें हमारे सामने मेहनत का मोती नजर आता, लेकिन कभी हिम्मत नहीं हुई, उनसे पूछने की, उन्हें दबी जुबान से मेहनत का मोती क्यूं कहते हैं। लेकिन आखिरकार एक दिन वह भी आ ही गया, जब हमें इस मेहनत के मोती का राज भी पता चल गया।।

हुआ यूं, कि अचानक शाम को दफ्तर खत्म होने पर हम साथ साथ बाहर निकले। कुछ ही दूर पर उनका दुपहिया वाहन खड़ा था, जिस पर शुद्ध हिंदी में मेहनत का मोती लिखा हुआ था। हम तो एकाएक उछल ही पड़े, मालवीय जी

यह गाड़ी आपकी है ? वे हमारा आशय समझ गए !

हां शर्मा जी, यह गाड़ी हमारी है, और हमारे खरे पैसे की कमाई है। अगर हमने इस पर मेहनत का मोती लिखवा दिया तो

आपको क्या आपत्ति है !हमने संभलकर जवाब दिया, नहीं मालवीय जी,

किसने कहा। यह तो बहुत अच्छी बात है। वह आश्वस्त हुए या नहीं, पता नहीं, लेकिन मेहनत के मोती का राज़ तो खुल चुका था। फिर भी मजाल है, कोई उन्हें खुले आम मेहनत का मोती कहकर पुकार ले। अब उन्हें कौन समझाए, जब वे अपने वाहन पर गुजरते हैं, सब यही तो कहते हैं, देखो, वह मेहनत का मोती जा रहा है।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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