श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “ठंड, धूप और भूख…“।)
अभी अभी # 234 ⇒ ठंड, धूप और भूख… श्री प्रदीप शर्मा
जिस तरह मनुष्य की मूल भूत तीन आवश्यकताएं, रोटी, कपड़ा और मकान हैं, उसी तरह उसके स्वस्थ रहने की केवल तीन अवस्थाएं हैं, सर्दी का मौसम हो, जम से ठंड पड़ रही हो, सुबह सुबह आसमान साफ हो, और खूब तेज धूप निकल रही हो, और पेट में चूहे कबड्डी खेल रहे हों। यानी जोरदार ठंड, कड़कती धूप और जबरदस्त भूख की अगर सुबह सुबह जुगलबंदी हो जाए, तो तन, मन और उपवन में राग मस्ती और तंदुरुस्ती का आनंद लिया जा सकता है।
तेज धूप ठंड को रोशन तो करती ही है, ठंड में पेट की जठराग्नि को और भी बढ़ाती है। जो उबलती चाय का स्वाद, बर्फीली ठंड में जुबां को नसीब होता है, वही गुनगुना स्पर्श, नख से लेकर शिख तक, यानी तलवों से चोटी तक, उजल धूप से इस शरीर को प्राप्त होता है।।
यह एक सात्विक, इस लोक में अलौकिक, ऐसा सुख है, जिसमें इंसान की ना कौड़ी खर्च होती है, और ना एक धेला। इस धूप समाधि पर हर जड़ चेतन, कीड़े मकौड़े से लगाकर पशु, पक्षी, वन वनस्पति, पेड़ पौधे और फल फूलों का भी उतना ही अधिकार है। ठंड में खुली धूप का सुख, हर अमीर गरीब इंसान और कुत्ते बिल्ली तक के लिए, मुफ्त में उपलब्ध है। ठंड में जहां भी धूप फैली है, आप भी फैल जाइए। धूप में विटामिन डी जो है।
कड़ाके की ठंड हो, आसमान से धूप बरस रही हो, और ऐसे में भूख ना लगे, ऐसा हो ही नहीं सकता। जब चैन, संतुष्टि और सुख से पेट भर जाता है तो इंसान की भूख और भी बढ़ जाती है। धूप में कोई गन्ना चूस रहा है तो कोई सब्जी सुधारते सुधारते, गाजर मूली ही खा रहा है। बस दिन भर खाते रहो, चबाते रहो, पचाते रहो।।
ठंड में गर्म चीजें, तो गर्मी में ठंडी चीजें। कितने काढ़े, गर्मागर्म सूप ही नहीं,
सर पर टोपा, बदन पर शॉल, मफलर, कोट और गर्म जैकेट भी ! सुबह अगर पूरी कायनात को धूप का इंतजार होता है, तो रात होते ही, कंबल, बिस्तर और रजाई की याद आने लगती है। जो मजा सिगड़ी और अलाव की आग का है, वह रूम हीटर वालों को कहां नसीब।
ईश्वर ने ठंड केवल धूप खाने के लिए ही नहीं बनाई, हाजमे और स्वास्थ्य का खयाल रखते हुए सुबह सुबह दूध जलेबी के
सेवन के लिए भी बनाई है। गुड़, तिल्ली और मूंगफली खाने के लिए कोई मुहूर्त नहीं निकाला जाता। छोड़िए आलू की कचोरी को, भुट्टे और मटर, यानी बटले की कचोरी खाइए। किस को नहीं पसंद, अपनी पत्नी के हाथ का बना भुट्टे का किस और उसमें ढेर सारा नींबू और जिरावन !
अब गराडू़ की बात तो बस रहने ही दो। ताजा घर का बिलोया हुआ मक्खन और मक्के की रोटी और सरसों के साग का प्रोग्राम है आज।।
खूब जमेगी, जब मिल बैठेंगे हम चार यार, ठंड, धूप, तगड़ी भूख और आप सबका ढेर सारा प्यार। जलूल जलूल से आप भी आइए, लेकिन हां, धूप साथ लेकर आइए ..!!
© श्री प्रदीप शर्मा
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