श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “सौ बार जनम लेंगे।)

?अभी अभी # 235 ⇒ सौ बार जनम लेंगे… ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

आज हम नहीं कहेंगे, बहारों फूल बरसाओ, क्योंकि दुनिया जानती है, आज से सौ साल पहले, आज ही के दिन, यानी 24 दिसंबर 1924 को आसमान से एक फरिश्ता हमें प्यार का सबक सिखलाने आया था। आओ तुम्हें मैं प्यार सिखा दूं, वह खुद बहारों की बारात साथ लेकर साथ आया था। जैसी मुस्कुराहट उसके हंसते हुए नूरानी चेहरे पर जन्म के समय थी, वही मुस्कुराहट और ढेर सारी नेकी और प्यार वह अपने नगमों के जरिए हम सबमें लुटा गया ;

बा होशो हवास मैं दीवाना

ये आज वसीयत करता हूं।

ये दिल ये जाॅं मिले तुमको,

मैं तुमसे मोहब्बत करता हूं।।

आज रफी साहब का जन्म दिन ही नहीं, उनके जन्म शताब्दी महोत्सव का आज

पहला दिन है। पूरे साल उनके नगमे आसमान में वैसे ही गूंजेंगे, जैसे उनकी आवाज हमेशा हमारे कानों में गूंजती आई है। साल में दो बार इस इंसान को याद किया जाता है, आज के दिन, यानी 24 दिसंबर और 31 जुलाई 1980, जिस दिन यह पंछी अपने बाग को छोड़ आसमान में उड़ गया था।

मुझे अच्छी तरह याद है, रफी साहब की 25 वीं पुण्यतिथि पर रेडियो सीलोन ने पूरा जुलाई माह इस गायक को श्रद्धापूर्वक समर्पित कर दिया था। 1जुलाई से 31 जुलाई तक रेडियो सीलोन पर केवल रफी साहब की ही आवाज गूंजी थी। वो जब याद आए, बहुत याद आए। क्या दिन, महीना और साल, क्योंकि ;

जनम जनम का साथ है, हमारा तुम्हारा।

अगर मिले ना इस जीवन में

लेंगे जनम दोबारा।।

क्योंकि उनका ही यह वादा था ;

सौ बार जनम लेंगे

सौ बार फना होंगे।

ऐ जाने वफा फिर भी

हम तुम ना ज़ुदा होंगे।।

जन्मदिन खुशी का मौका होता है, आज किसी के गम में आंसू नहीं बहाते, लेकिन खुशी में भी कहां बाज आते हैं ये आंसू। क्योंकि ये आंसू मेरे दिल की जुबान है।।

हमारा दिल भी तो एक मंदिर ही है। रफी साहब का तो इबादत का अंदाज भी निराला ही था ;

एक बुत बनाऊंगा और पूजा करूंगा।

अरे मर जाऊंगा यार

अगर मैं दूजा करूंगा।

जिसकी अंखियां हरि दर्शन को प्यासी हों, जिसकी आंखों में हमने प्यार ही प्यार बेशुमार देखा हो, जो बस्ती बस्ती, परबत परबत, एक बंजारे की तरह, दिल का इकतारा लेकर गाता रहता हो, और प्यार के गीत सुनाता हो, अपने दिल का दर्द बयां करता हो, आज उसके जन्मदिन पर यही कह सकते हैं :

बार बार दिन ये आए…

और हजारों सालों तक यह दुनिया आपके गीत गुनगुनाएं। आप जब भी याद आए, बहुत याद आए। बिछड़ने का तो सवाल ही नहीं, क्योंकि जन्म शताब्दी का तो आज फकत आगाज़ ही है ;

मेरी आवाज सुनो,

प्यार का राज़ सुनो।

दिल का भंवर करे पुकार,

प्यार का राग सुनो।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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