श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है स्त्री विमर्श पर आधारित एक संवेदनशील लघुकथा “झरोखा”।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 175 ☆
☆ लघुकथा – 🏠 झरोखा 🏠 ☆
मन को भाए आनंदित, हर्षित, उमंग, और प्रेम से भरा बहुत ही सुंदर शब्द झरोखा। बड़े बुजुर्गों के पास बैठकर उनकी बातें सुनने में झरोखे में ही पूरी रात की चर्चा हो जाती है। मन को अति प्रेमिल रोशन करती वह रोशनदान जिसे झरोखा कहें, न जाने कितने प्रेम गीत इस झरोखे पर बने और जीवन पर आधारित कहानी बनी।
रोमांचित करता झरोखा आज नवल किशोर को बहुत ही झकझोर रहा था। एक समय था जब उसके प्रेम में पागल वह दीवानी बस झरोखे से ही उसे देखा करती। न बातचीत ना कोई संदेश न और न मोबाइल का चलन कि झटपट मैसेज लिख दिया जाए। दिन का उजाला कोई देख न ले इस बात से, वह झरोखा सिर्फ पर्दा हिलता नजर आता।
सांझ ढले दीप जले कभी टिक-टाक बिजली का बटन जब जल बुझ जाए, झरोखा अपनी कहानी बनाना शुरु करती।
यूं ही मस्ती भरी शाम रात ढलते न जाने कितना समय निकल गया। नवल किशोर बस उस झरोखे का दीदार करते रहता था।
बस एक झलक और फिर टकटकी। यही पूरे दिन रात का काम हुआ करता था। पेशे से वकील न जाने कितने केस के बारे में पढ़ता और मनन करता।
परंतु जीवन का यह झरोखा किसी जज के ऑर्डर की तरह मन की और भी व्याकुलता को बढ़ा रहा था।
आज वह ठान चुका था कि इस झरोखे पर वह जबरदस्त बिल पास करेगा। चाहे अंजाम कुछ भी हो।
नए वर्ष का जश्न गाँव, शहर, गली, मोहल्ला, सिटी सभी जगह अपने शबाब पर था। नवल किशोर खास समय के इंतजार में था। शहर में पढ़ा लिखा। भोर होते ही चल पड़ा उस झरोखे की ओर।
नए वर्ष की शुभकामना और बधाइयाँ कुछ बात कह दूंगा। द्वार खुला एक वयोवृध्द दादा जी ने दरवाजा खोला— नवल किशोर प्रणाम करके ‘नूतन वर्ष मंगलमय हो’ – – अभी वह कुछ कह भी नहीं पाया कि रंग विहीन श्वेत फटी साड़ी में लिप्त वह झरोखा में जिसे देखा करता।
आज देखते ही आँखें बाहर होने लगी। अपने आप को संभाल वह उसे देखने लगा और देखते-देखते उसकी आँखों से आँसुओं की धार बहने लगी।
हाथों में सिंदूर का डिब्बा था। मुट्ठी बंद, खोलती, बंद करती वह यही कह रही थी – – – “क्या अब भी आप???” बस इतना सुनना था उंगली से उसका मुँह बंद करते हुए नवल किशोर ने– सिंदूर ले माँथे पर लगा कहने लगा – – “अब यह झरोखा मेरे जीवन की रोशनी होगी सदा सदा के लिए। नूतन वर्ष में हमारे नये जीवन की शुरुआत करते!!!!!”
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© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈