श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश।आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल “करने कितने काम हैं …” ।)
ग़ज़ल # 106 – “करने कितने काम हैं…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
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जब से तेरे इश्क़ की शहद ओंठों से लगाई है,
तब से दिल में मीठ सा दर्द मीठी सी तन्हाई है।
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सांसद चुनते रहते हम हर दफ़ा पाँच सालों में,
सरकारी मेहनत का फल सिर पर मंहगाई है।
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वो पेड़ा भगवान को दिखाकर ख़ुद ही चढ़ा जाते,
भ्रष्टाचारी की अब तक बनी ना कोई दवाई है।
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भारत को राष्ट्र हितैषी नेता अब मिल पाया है,
असली आज़ादी पचहत्तर वर्ष बाद मिल पाई है।
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करने कितने काम हैं अभी बाक़ी देश हित में,
देखिए आगे है क्या अभी तो लम्बी लड़ाई है।
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राष्ट्र में एकरूप नागरिक संहिता लागु होना है,
तब कौन कहेगा अलग हिंदू मुस्लिम सिक्ख ईसाई है।
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रामलला दरबार सज़ रहा है सरयू किनारे पर,
आतिश को अब रोज-रोज मिलनी मीठी मलाई है।
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© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
भोपाल, मध्य प्रदेश
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈