श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# विधुर का जीवन #”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 160 ☆
☆ # विधुर का जीवन # ☆
सुबह सुबह पार्क की बेंच पर
वह बैठा रहता है
मुझे देख मुस्कुरा कर
गुड़ मार्निंग कहता है
उसकी चेहरे की झुर्रियों में
गजब की उष्मा है
आंखों पर मोटे ग्लास का
चश्मा है
अधपके काले सफेद बाल हैं
लंगड़ाते हुए उसकी चाल है
सबसे गर्म जोशी से
हाथ मिलाता है
अपने दर्द को भूलकर
खूब खिलखिलाता है
मैंने एक दिन पूछा-
भाई! क्या हाल है ?
इस उम्र में यह ऊर्जा
वाकई कमाल है
वह बोला-
क्या कहें
किससे कहें
अपने दुःख हैं
बेहतर है खुद ही सहें
साहब –
बीमार पत्नी
कुछ साल पहले चल बसी
छिन गई तबसे हमारी हंसी
बहू बेटों के साथ रहते हैं
क्या कहें
क्या क्या सहते हैं
तीन बहू बेटों ने
मेरे दिन-रात
ऐसे बांटा है
नाश्ता, लंच, डिनर
फिर लंबा सन्नाटा है
साहब –
अगर पहले पति मर जायें
तो परिवार के साथ
पत्नी रम जाती है
परंतु पहले अगर पत्नी मर जाये
तो आदमी की जिंदगी
थम जाती है
लगता है कि
उधारी की
जिंदगी जी रहा हूँ
हंसते हंसते
अकेलेपन का
जहर पी रहा हूँ
साहब –
पत्नी बिना बुढ़ापा
कांटों भरी शैय्या है
विधुर का जीवन तो
बिन मांझी की नैया है /
© श्याम खापर्डे
फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो 9425592588
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈