श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “चोली दामन का साथ…“।)
अभी अभी # 256 ⇒ चोली दामन का साथ… श्री प्रदीप शर्मा
चोली दामन का साथ एक मुहावरा है, जिसका प्रयोग बोलचाल की भाषा में बहुतायत से किया जाता है। अच्छी मित्रता हो, घनिष्ठ संबंध हो, एक के बिना दूसरे की उपयोगिता ना हो, वहां चोली दामन उदाहरण स्वरूप चले आते हैं।
कुछ उदाहरण तो आदर्श होते हैं, मसलन राम और सीता, राम और लक्ष्मण, राधा और श्याम और कृष्ण के अधरों पर बांसुरी। जुम्मन शेख और अलगू चौधरी हों, अथवा ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे वाले शोले के जय और वीरू। लोग तो शोले, दीवार और त्रिशूल वाली सलीम जावेद की जोड़ी को भी याद करते हैं। लेकिन दोनों में कौन चोली और कौन दामन, समझना मुश्किल ! आज देखिए कहां चोली और कहां दामन। जावेद के दामन में आज शबाना और सलीम भाई के आंचल में भाई सलमान।
चोली दामन नहीं हुए, बदलते हुए सितारे हो गए।।
क्या पांव की जूते की जोड़ी में चोली दामन का साथ नहीं, एक से काम भी नहीं चलता, और दूसरे पांव में जोड़ी की जगह चप्पल भी नहीं चलती। एक समय था जब लेखक बिना कलम के और हज्जाम बिना उस्तरे के किसी काम का नहीं था। झूठ क्यूं बोलूं, मेरी आंखों का और मेरे चश्मे का भी चोली दामन का बचपन से ही साथ है।
हमारे शरीर का सांसों के साथ कितना गहरा संबंध है, हम नहीं जानते। वैसे देखा जाए तो एक मां और उसकी संतान का तो साथ चोली दामन से भी कई गुना अधिक होता है, जिसकी व्याख्या करना इतनी आसान भी नहीं। लेकिन हां चोली दामन के साथ पर हम जरूर कुछ प्रकाश डाल सकते हैं।।
चोली को आप चाहें तो स्त्रियों का अंग वस्त्र कह सकते हैं। जिस तरह फिल्म शोले में ठाकुर यानी संजीव कुमार हमेशा एक शॉल ओढ़े रहता था, उसी तरह चोली को दामन अर्थात् आंचल अथवा पल्लू से हमेशा ढंका रखा जाता है। पुरुष का क्या है, वह तो बड़ी आसानी से कह उठता है ;
चुनरी संभाल गोरी
उड़ी चली जाए रे ….
क्योंकि उसको तो उड़ती पतंग को काटने और लूटने में बड़ा मजा आता है। पतंग और डोर का ही तो साथ है, चोली और दामन का।
लेकिन पुरुष में कहां हया और शरम ! ईश्वर ने उसे ना तो आंचल ही दिया और ना ही दामन। वह तो कमीज के बटन खोलकर, सीना तानकर चलता है। वह क्या जाने एक चोली का दर्द। दामन में दाग भी स्त्री को ही लगता है और आंचल भी उसे ही फैलाना पड़ता है।।
केवल एक मासूम सा, नन्हा सा बालक ही समझ सकता है, चोली दामन का उसके लिए क्या महत्व है। क्योंकि मेरी दुनिया है मां, तेरे आंचल में। उसी आंचल में, उस नन्हीं सी जान के लिए दूध है, और रात भर जागी हुई आंखों में ममता भरा पानी। वहां मां के दामन में उसके लिए खुशियां ही खुशियां हैं। यह होता है, चोली दामन का साथ।।
फिल्म मॉडर्न गर्ल (1961) का एक खूबसूरत सा गीत रफी साहब की आवाज में ;
नज़र उठने से पहले ही
झुका लेती तो अच्छा था।
तू अपने आपको पर्दा
बना लेती तो अच्छा था।।
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