श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “प्रतिष्ठित प्राण प्रतिष्ठा…“।)
अभी अभी # 260 ⇒ प्रतिष्ठित प्राण प्रतिष्ठा… श्री प्रदीप शर्मा
आओ सखी,
हे री सखी, मंगल गाओ रे ..
इंतजार अब नहीं, इंतजार अब और नहीं, आखिर वो शुभ घड़ी आ ही गई, जो भारतीय संस्कृति और सभ्यता के इतिहास में हमेशा के लिए स्वर्णाक्षरों में दर्ज होने जा रही है। जन्म जन्म के वे प्यासे भक्त जो त्रेता युग में अपने आराध्य मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम का राज्याभिषेक नहीं देख पाए, आज वे उसी अयोध्या में अपने आराध्य रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने जा रहे हैं।
अंबानी, अडानी, टाटा, सिंघानिया, कंगना, हेमा, जया, मोदी, योगी, बिग भी, सूची बहुत लंबी है, जिनमें मैं जाहिर रूप से शामिल नहीं हूं, लेकिन मेरे जैसे करोड़ों ऐसे भक्त हैं, जो अपने घर आंगन, दफ्तर और दुकान में समर्पित भाव से टीवी के माध्यम से ही इस ऐतिहासिक क्षण के भागी बन गए हैं। यह प्रतिष्ठा का नहीं, प्राण प्रतिष्ठा का अवसर है।।
बड़े भाग, मानुस तन पायो, कितना सार्थक सिद्ध हुआ है आज यह कथन। इतने भाग्यशाली तो तुलसीदास जी भी नहीं होंगे। लेकिन उनकी स्थिति हमने कई गुना ऊंची और अच्छी थी, क्योंकि केसरीनंदन हनुमान की तरह ही प्रभु राम, सीता और लक्ष्मण उनके हृदय में हर पल विराजमान थे।
उनका कवि हृदय कितना विशाल होगा, जो जन जन को रामचरितमानस जैसा अद्भुत ग्रंथ समर्पित कर गया। यह होती है एक भक्त की अपने आराध्य की हृदय में प्राण प्रतिष्ठा, जो जब मथुरा और वृन्दावन जाते हैं तो यह प्रण लेकर जाते हैं, कि अगर सांवरा कृष्ण कन्हैया मुझे दरस देना चाहता है, तो उसे मेरे आराध्य के समान धनुष धारण करना पड़ेगा। और भगत के वश में भगवान को उसकी हर मांग पूरी करनी ही पड़ती है। भक्त तुलसीदास की भेद बुद्धि भी नष्ट हो जाती है। राम, कृष्ण में कोई अंतर नहीं, कोई भेद नहीं।
मंदिर मंदिर मूरत तेरी, फिर भी ना दीखे सूरत तेरी, यह केवल वही नरसिंह भगत कह सकता है, जिसके प्राण में अपने इष्ट घनश्याम प्रतिष्ठित हो गए हैं, विराजमान हो गए हैं। इसीलिए भक्त उसे घट घट वासी मानता है। वह दयानिधान, कृपासिंधु, सबका पालनहार आपको खेत में, खलिहान में और हर मजदूर किसान की झोपड़ी में मिलेगा।।
मुझे मेरे आराध्य प्रभु श्रीराम को अपने प्राणों में प्रतिष्ठित करना है, मेरा रामलला और कृष्ण कन्हैया एक ही है। बस मुझे उनकी लीलाओं में अपने आपको डुबोए रखना है।
बहुत आसान है कहना,
तेरा नाम तेरे मन में है,
मेरा नाम मेरे मन में है।
कलयुग नाम अधारा तो है ही, राममय होने का अवसर है, मत चूके चौहान ;
मेरे प्रभु तू आ जा
मन में मेरे समा जा।
मैं ढूंढता तुझे हूं
आ जा, तू अब तो आ जा।।
राम, राम, राम,
सीता राम राम राम
जय श्रीराम ..
© श्री प्रदीप शर्मा
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