सुश्री इन्दिरा किसलय
☆ कविता – “नादान मछलियां” ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆
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केवल तुम से तुम तक है
समझो बात सुरक्षित है।
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चंदनवन की राह विकट है
सांपों से अभिरक्षित है।
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खुद से खुद तक नहीं पहुंचा
वो दुनिया भर में चर्चित है।
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जीते जी पुतले बनवाए
कैसे कहें वो मूर्छित है ।
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लुटे पिटे बेबस हैं लाखों
पत्थर को प्यार समर्पित है।
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नादान मछलियां देख रहे हैं
बगुले कितने हर्षित हैं ।
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बहुरूपिए का कसूर क्या?
वो आका से आकर्षित है।
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© सुश्री इंदिरा किसलय
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈