श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा –  गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी,  संस्मरण,  आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – मूक ज्ञान।)

☆ लघुकथा – मूक ज्ञान ☆ श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

पार्टी में अचानक मंजू और माधुरी को देखकर उसकी सास कमला जी जोर से हंसते हुए बहू के गले लगती हैं और प्यार से उसके सिर पर हाथ हाथ फेरते हुए कहा- तैयार हो कर आ गई, ननद भौजाई दोनों कितनी प्यारी और सुंदर लग रही है और अपनी आंखों के काजल से दोनों को काला टीका लगाती हैं भगवान यह जोड़ी हमेशा सलामत रखें।

माधुरी को बहुत गुस्सा आता है और मन ही मन कहती है कि मैं इतना सुंदर तैयार हूं लेकिन आज मैं सिर पर पल्लू नहीं रखूंगी मैं एक पढ़ी-लिखी लड़की हूं इस घर में आकर इन लोगों ने मुझे नौकर बना दिया है चाहे कोई भी आए?

दूर से अचानक उसके पति देव उसके पास आते हैं ।

साथ में खड़े होकर कहते हैं कि चलो उधर मेरे दोस्त और यहां पर अपने रिश्तेदार भी बहुत आए हुए हैं उन सभी से मिलवाता हूँ।

अरे !यह क्या सामने से बड़े काका भी चले आ रहे हैं, गांव वाले घर के बगल में जो बड़ी अम्मा रहती हैं, वह भी दिख रही हैं?

पति अभिषेक ने दोनों को प्रणाम किया।

तभी धीरे से माधुरी ने पल्लू अपने सिर पर रखा और उनके पैर छुए। दोनों लोगों ने बड़े प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा और कहा बिटिया सदा खुश रहो ।

अभिषेक तुम्हें बहुत ही अच्छी सुंदर दुल्हन मिली है और कितनी संस्कारी है।

उनकी बातें सुनकर माधुरी मन ही मन शर्मिंदा हुई और अपने पति की आंखों में उसे उसके लिए गर्व दिखा। पतिदेव ने उसे बड़ी ही प्रशंसा भरी नजरों से देखा और धीरे से उसके  हाथ को अपने हाथ में लिया और गुलाब जामुन वाले काउंटर में गए दोनों ने साथ में मीठे का आनंद लिया।

अचानक उसे याद आया कि प्रशंसा ऐसे मिलती है। मेरी और मेरी ननद की सब लोग तारीफ कर रहे हैं । तभी वह पति से कहती है आप अपने दोस्तों से मिलिए मैं मंजू के साथ रहती हूँ।

मंजू को साथ लेकर वह अपनी दूर के रिश्ते की मौसी के पास जाती है।

अरे! मौसी देखो मंजू मौसी जी मेरी मंजू कितनी प्यारी है पढ़ी लिखी है योग्य है। तुम मेरे भाई से शादी क्यों नहीं कर रही हो कोई लड़की तुम्हें मिली या नहीं। मेरे परिवार को तो अच्छे से जानती हो क्यों ना इसे हम रिश्तेदारी में बदलें।  भाई अनुज कहां है उसे तो मिलवाया ही नहीं ।

अनुज ने पैर छूकर प्रणाम किया अनुज यह मंजू है मंजू जो अनुज को प्लेट लगाकर खाना तो खिलाओ तब तक मैं मौसी को मम्मी पापा से मिलवाती हूं।

हां बेटा तुम ठीक कह रही हो आज तो मेरा भी मन कर रहा है कि मैं भी सास बनी जाती हूं कहां है तुम्हारी सास।

अचानक वह गहरी चिंता में खो जाती है मैं भरपूर दहेज दूंगी मेरे मन को क्या हुआ?

मैं अपनी भाभी की तरह इसे अपना सारा सामान दूंगी और आज ही इसका विवाह पक्का करवा देता हूं।

मेरी भाभी ने जैसे मुझे अपनी छोटी बहन बना कर रखा इस तरह में अपनी ननद को भी  बहन बनाकर रखूंगी। शादी में आए सभी रिश्तेदारों में से एक लड़के के साथ तो मैं अवश्य रिश्ता तय करके रहूंगी। उसका घर बस जाएगा। मेरे मायके के संस्कार और ससुराल की इज्जत को आगे बढ़ा कर रहूंगी। मैं सब के प्रति कितना गलत सोच रही थी पर आज मैंने यह बात जान ली कि मान सम्मान और प्रशंसा कैसे प्राप्त होती है।

संस्कार का क्या महत्व है। बड़े बुजुर्गों की इज्जत करके उनकी आंखों ने बिना कहे ही मूक ज्ञान मुझे दे दिया।

© श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

जबलपुर, मध्य प्रदेश मो. 7000072079

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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