सुश्री दिव्या त्रिवेदी
☆ संस्मरण – Spread Goodness Spread Happiness (SGSH) कहानी के पीछे की कहानी ☆ सुश्री दिव्या त्रिवेदी ☆
(किताब राइटिंग पब्लिकेशन्स की संस्थापिका सुश्री दिव्या त्रिवेदी के जीवन के उतार चढ़ाव की प्रेरक कथा। एक वर्ष से भी कम समय में उन्होंने 1500+ पुस्तकें प्रकाशित की हैं। ई- अभिव्यक्ति के अनुरोध पर उनका संस्मरण हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए।)
जिंदगी कभी भी आसान नहीं होती लेकिन मेरी जिंदगी आसान थी। मैंने ही अपनी जिंदगी को अशांत कर दिया था। लेकिन मैंने किस तरह उसे फिर से आसान बनाया आइए जानते है।
मुझे एक भयंकर क्रोध की बीमारी है। बचपन से ही मुझे छोटी-छोटी बातों में बहुत गुस्सा आता है। इस ही गुस्से की वजह से जब में आठवीं कक्षा में थी तब अपने हाथ में पेन की नीव से काट दिए थे। तब टीचर्स स्टूडेंट्स में भेदभाव करते थे। जो अच्छे गुण लाते थे उनको ही आगे रखते थे। उनको ही कक्षा का मुख्य बनाते थे। तब उस समय मुझे इतना गुस्सा आ रहा था कि जब शिक्षक पढ़ा रहे थे तब मैंने दोनों हाथों में पेन वाली पेंसिल 🖋️ की नीव से अपने हाथों में छाले कर दिए थे। जब छूटते समय मेरी सहेली को उनसे काम था तो मैं उसके साथ गई थी। बात करते करते समय शिक्षक ने मेरा छाले वाला हाथ देख लिया। वह देखते ही मुझे चाटा मारा और प्रिंसिपल के पास ले गए। प्रिंसिपल ने बोला कल मम्मी पापा को लेकर आना। लेकिन मैंने घर पर कुछ नहीं बताया और घर पर किसी को पता भी नहीं चला क्योंकि उस समय ठंडी का सीजन चल रहा था तो मैंने लंबा स्वेटर पहनकर ही रखा था तो किसी को कुछ पता नहीं चला।
दूसरे दिन जब में क्लास में गई तब प्रिंसिपल ने पूछा मम्मी पापा किधर है ? मैं बिना कुछ बोले सिर झुकाकर खड़ी रही। लेकिन मेरा स्कूल का आईडी कार्ड लेकर प्रिंसिपल ने पापा को फोन करके बुलाया और पापा ने मम्मी को स्कूल भेजा। मम्मी ने भी आकर चाटा मारा और पूछा यह सब क्यूं किया ? मेरे पास बोलने के लिए कुछ था ही नहीं लेकिन जवाब तो देना था इसलिए मैंने बोला की आपने कल सुबह दीदी को पानी गरम करने के लिए पूछा लेकिन मुझे नहीं पूछा। यह मैंने झूठ बोला था लेकिन क्या करती टीचर के सामने उनका बुरा नहीं ही बोल सकती थी। धीरे – धीरे सब टीचर को पता चल गया और सब टीचर मुझसे डरने लगे। जो टीचर मुझे कभी जानते नहीं थे वो भी मेरे से अच्छे से बात करने लगे थे। उनको डर था फिर गुस्से में कुछ कर दूंगी तो स्कूल का नाम खराब हो जाएगा। यह मेरी पहली आत्महत्या की कहानी थी। जिसकी शुरुआत बचपन से ही हो गई थी। लेकिन आने वाले साल और मेरा गुस्सा उम्र के साथ ज्यादा बढ़ने वाला था।
कुछ साल बाद…
मैं जब ग्यारहवीं कक्षा, जो मुंबई में जूनियर कॉलेज होता है । मुझे तारीख आज भी याद है १ नवंबर, २०१७, कॉलेज से निकलकर ऐसिड बैग में डालकर बोरीवली मुंबई में से चर्नी रोड़ जो पहले खुला था और वहां बहुत पानी की बड़ी नदी है। उधर जाकर मैं पानी में डूब गई थी। पूरा अंदर चली गई थी और मरने ही वाली थी लेकिन किसीने आकर मुझे पानी से बाहर निकाला। मुझसे वहां के लोगों ने पूछा की क्यूं यह सब कर रही हूं? लेकिन मैं चुप रही और फिर बोला मुझे मत रोको। ( उस समय पानी में मेरा एटीन थाउसैंड का फोन पानी में गया जो कभी भी ठीक नहीं हुआ ) वह लोगों ने मेरा बैग देखा की शायद किसका नंबर मिल जाए लेकिन उसमें मैंने ऐसिड की बोतल रखी थी। वो लोगों ने देखकर ही फेक दी। बैग में मेरी एक किताब मिली जिस में क्लास टीचर का नंबर लिखा हुआ था। उन लोगों ने मेरी क्लास टीचर को फोन करके सब बताया। मेरी टीचर ने मुझे कॉलेज लाने के लिए कहा और मेरे परिवार को भी संपर्क किया । फिर वो लोग मुझे स्टेशन तक छोड़कर गए और मेरी बहन मुझे लेने आई थी। टीचर ने कॉलेज बुलाया था तब जब हम कॉलेज जा रहे थे, तब सामने मेरे क्लास के मेरे क्लासमेट मेरा मज़ाक उड़ा रहे थे। टीचर को काम था तो वह मुझसे मिल नहीं पाई थी। ( वैसे अच्छा ही हुआ, मेरे में हिम्मत नहीं थी उनकी बात सुनने की ) जब दीदी घर पर लाई तो सबने मेरे पर बहुत गुस्सा किया। उनकी जगह कोई भी परिवार होता तो ऐसी हरकतें देखकर गुस्सा ही करेंगे लेकिन उस वक्त में अंदर से पूरा खत्म हो गई थी। सब बिखरता हुआ दिख रहा था । मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा की आगे मैं क्या करूं और सब लोगों का सामना कैसे करूं? किसको अपना दर्द बताऊं? वही दूसरे दिन कॉलेज जाकर पता चला कि मेरे क्लास टीचर ने हर क्लास में जाकर बताया कि मेरे क्लास की एक लड़की कल सुसाइड करने गई थी। मैं जिसको अपनी सहेली मानती थी, उसने भी वो जहां ट्यूशन जाती थे, वहां उसने भी सबको बताया। मैं जहां रहती थी, वहां मेरी क्लास की एक लड़की रहती थी। मेरा परिवार उनको जानता था। एक दिन मम्मी जब किसी से बाहर कुछ बात कर रही थी तो उन्होंने मेरी मम्मी को ताना मारा की इनकी बेटी पानी में मरने गई थी। मम्मी ने घर आकर बताया कि वह ऐसा बोल रहे थे। मुझे मन में इतना दुःख हुआ की शब्दो में वह स्थिति बयान नहीं कर सकती ।
इतना सब होने के बाद भी मेरे परिवार ने मुझ पर विश्वास करके मुझे कॉलेज भेजा। नया स्मार्ट फोन दिलाया। परिवार का प्यार भी शब्दों में बताना मुश्किल है। सब फिर से नॉर्मल हो गया था लेकिन……
फिर एक दिन मुझे गुस्सा आया और सुबह सुबह मैं गई जूहु बीच। तब मैंने ब्लैड से अपनी नस काटकर बहुत पानी में गई। ( वह ब्लैड के निशान आज भी मेरे हाथों में है।) तब भी मुझे किसीने बचा लिया और फिर से वही सब सुनना पड़ा। मैंने कई बार आत्महत्या करने के इससे भी बड़े प्रयास किए लेकिन इतना अभी बता नहीं सकती। मैंने इतना गुस्से में किया की लग रहा था; अब सब खत्म हो रहा था और वो सब मैं अपने हाथों से ही अपनी जिंदगी बर्बाद कर रही थी। जब मुझे किसी एक सच्चे मित्र की आवश्कता थी तब मेरे पास, मेरी परेशानी सुनने वाला कोई भी नहीं था। हां, जब क्लास नोट्स या कुछ काम हो तो सब आते थे लेकिन मेरे दर्द में किसीने मुड़कर भी नहीं देखा था। घर वाले, रिश्तेदार, कॉलेज वाले सब ताना मार रहे थे और मुझे और मेरे परिवार को सबका सुनना पड़ रहा था। साल बीतते रहे और समय जाता रहा। मुझे डॉक्टर बनना था लेकिन यह सब की वजह से मेरा ध्यान भटक गया था। सिर्फ मेरे परिवार की वजह से जिंदगी काट रही थी। लेकिन वो कहते है ना हर अंधेरे के बाद एक दिन रोशनी जरूर होती है और मेरा अच्छा समय भी आने वाला था….
एक दिन मैंने सोचा कि मैं बार बार मरने का प्रयास कर रहीं हूं तो भगवान मुझे क्यों नहीं ले रहे है? क्यूं मुझे यह मतलबी, घमंडी और बुराई की दुनिया में रख रहे है? जिस दुनिया में अच्छाई ना हो और दिखावे की खुशी हो, कोई मर रहा होता है फिर भी लोग मदद करने की जगह खुश होते है, ताना मरते है, ऐसी दुनिया में रहकर क्या मतलब? बचपन से वो भेदभाव देखकर मेरी जीने की इच्छा खत्म हो गई थी। उसमें भी धीरे धीरे इन्फेक्शन, कान का ऑपरेशन सब बीमारियां बढ़ रही थी। तब परिवार के इतने पैसे जा रहे थे की अंदर से मरने का बहुत मन था लेकिन उनका प्यार देखकर सब सहन कर रही थी। कई बार सोचते सोचते एक दिन सोचा कि मेरे अंदर कुछ तो है जो भगवान मुझे मरने नहीं दे रहे है। हर बार कुछ चमत्कार करके मुझे बचा लेते है। फिर मैंने सोचा ऐसी कौन सी चीज है जिससे मुझे बहुत ही गुस्सा आता है? ऐसी कौन सी बात है, जो देखकर मुझे इस दुनिया में उठ जाना ही बेहतर लगता है? फिर मुझे ध्यान में आया की इस दुनिया में इतनी बुराई, इतना घमंड, इतनी नकारात्मकता, इतना स्वार्थीपन यही मेरे गुस्से की वजह है। फिर सोचा मुझे मेरी जिन्दगी तो पसंद है नहीं और नाही कभी होने वाली है। सोचा जो बुराई मैंने देखी है, वो बुराई सब हर दिन देखते ही होंगे। उसमें से कितने सारे मेरे जैसे होंगे और जैसे की हम सब जानते है की आत्महत्या की आए दिन कई केस देखने मिलते है । फिर वो आम इंसान हो या बड़ा सेलिब्रेटी हर कोई इस जाल में फस रहा है। फिर धीरे धीरे मैंने पॉजिटिव रहना शुरू किया, संदीप महेश्वरी सर और काफी अच्छे वीडियो देखे। तब उसका तुरंत असर नहीं हुआ लेकिन कुछ महीनों बाद अपने आप एक ही मिशन की शुरआत मैंने कर दी थी जिसका नाम था स्प्रेड गुडनेस, स्प्रेड हैप्पीनेस (Spread Goodness, Spread Happiness – SGSH ) जिसमें मैं कुछ एनजीओ या कुछ बड़ा नहीं कर रही थी लेकिन धीरे धीरे मैं सकारात्मकता, बहुत छोटी छोटी मदद करके, अच्छा बोलकर, अच्छा रहकर अच्छाई फैलाने की कोशिश करती हूं। हालांकि गुस्सा तो अभी भी वही था लेकिन धीरे धीरे अच्छाई का पावर बढ़ रहा था।
इसके चलते ही मैंने सोचा मेरे सपना क्या था? मेरा सपना डॉक्टर बनने का था लेकिन डॉक्टर बनने के लिए मेरे दो मार्क्स कम आए थे। फिर मैंने Bsc बैक अप प्लान का सोचकर बारहवीं परीक्षा वापस देने का सोचा। लेकिन जब पढ़ना चाहिए था तब मैंने समय बर्बाद करके आत्महत्या और दूसरे कामों में लगी हुई थी। जब बारहवीं की परीक्षा फिर से आई तब मैं फिजिक्स प्रेक्टिकल के समय रोने लगी थी, टीचर ने भी डाटा क्योंकि मुझे कुछ आता नहीं था फिर भी परीक्षा फिर से दे रही थी। सब टीचर और घरवालों ने बोला जो मार्क्स आए है रखो और आगे बढ़ो लेकिन मैं कहां कुछ सुनने वाली थी, अब मुझे जो करना था वो करना ही था। बारहवीं का फिर से रिजल्ट आया और जितना मार्क्स चाहिए था आ गया लेकिन अभी भी नीट की परीक्षा में उतने मार्क्स नहीं आए जितने एमबीबीएस बनने के लिए चाहिए होते है। मैं धीरे धीरे बहुत निराश हो गई थी क्योंकि ना मैं बीएससी में अच्छा कर रही थी ना मैं नीट में अच्छे से ध्यान दे पा रही थी। धीरे धीरे मेरा डॉक्टर बनने का सपना टूटता हुआ दिखा और यह भी लगा की मेरे जैसे कमजोर लोग कल डॉक्टर बन भी गए तो भी कभी किसी का इलाज नहीं कर पाएंगे यह सोचकर मैंने नीट देना बंद कर दिया और डॉक्टर के सपने को त्याग दिया । ( लेकिन डॉक्टर बनने के लिए की गई मेहनत आज भी दिल में है। )
अब निराशा बढ़ रही थी क्योंकि बीएससी में भी सब ऊपर से जा रहा था। सब लोगों का बेसिक स्ट्रॉन्ग था लेकिन मेरा तो बेसिक ही वीक था। पहले सेमेस्टर में जब मैं बारहवीं बोर्ड की परीक्षा फिर से देने गई तब बीएससी का एक पेपर छूट गया और टीचर को लाख रिक्वेस्ट करने के बाद भी उन्होंने मेरा प्रैक्टिकल पेपर नहीं लिया और absent डाल दिया। जिंदगी में पहली बार मुझे absent मतलब कॉलेज में तो केटी आई। वो भी फिर से देकर मैं पास हो गई लेकिन फिर भी मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था। मैंने सिर्फ डॉक्टर बनने के बारे में सोचा था यह सब बीएससी वगैरा की कल्पना भी नहीं की थी। बहुत ज्यादा निराशा होती थी, जब क्लास में सब अच्छा कर रहे थे और मुझे आता था लेकिन मैं पढ़ाई में मेहनत नहीं कर पाती थी। मैंने कई मोटिवेशन वीडियो, गूगल में सर्च किया लेकिन कही से भी पढ़ने के लिए कुछ समझ नहीं आ रहा था। फिर भी एक डिग्री मिल जाए इसलिए सब कर रही थी। एक दिन फिर मैंने संदीप महेश्वरी सर का एक वीडियो देखा जिसमें उन्होंने समझाया था की आप वो करो जो आपको करना अच्छा लगता है। जो काम आप पूरा दिन करो तो भी आपको थकान महसूस ना हो। कुछ दिन तो समझ में नहीं आया लेकिन कुछ ही दिन बाद मेरे सर्टिफिकेट, मेरी ट्रॉफी और स्कूल, कॉलेज में जो मेरी पसंदगी चीजें थी वह लिखना था। मुझे अलग अलग विषयों पर अपने विचार लिखना बहुत पसंद है। पहले मुझे जिस पर छोटी छोटी कामयाबी मिली वह मेरी लिखावट पर ही था। अब मैंने हररोज एक छोटे छोटे सुविचार लिखकर सोशल मीडिया में डालती गई और तब से ही मैंने अच्छाई, सच्चाई और खुशियों पर लिखने की शुरआत की और मेरा मिशन SGSH आगे बढ़ाती गई ।
एक दिन मुझे इंस्टाग्राम में एक मैसेज आया की क्या आप मेरी एंथोलॉजी में भाग लेंगे? मैंने एक सेकंड भी सोचे बिना हां बोल दिया। जिसमें ऑनलाइन ३० रुपए देने थे । मेरे पास ऑनलाइन देने के लिए कुछ पैसे नहीं थे और घर पर बोलती तो शायद कोई विश्वास नहीं करता। फिर मैंने मम्मी का डेबिट कार्ड लेकर वह लिंक में पैसे दिए बिना किसी को पूछे।
वह एंथोलॉजी में मेरे दो पन्ने और मेरा फोटो था। किताब का नाम ” मेलोडी ऑफ स्प्रिंग” था। धीरे धीरे मुझे कई सांझा संकलन में लिखने के मौके मिलते रहे । लिखने का मेरा शोख अब मेरी आदत बन गई थी। इन सबके चलते मैंने अपनी पहली एकल किताब प्रकाशित की थी जिसका नाम द ब्यूटी ऑफ़ कोट्स था। मेरे लिखने की शुरुआत अब हो गई थी। अब मैं सह लेखक से लेखक और लेखक से संपादिका बन गई। मैंने करीब ५ से ७ प्रकाशन में काम किया। धीरे धीरे मुझे थोड़े पैसे भी मिलने लगे। जैसे की हम सब जानते है हर बिज़नेस के अपने रुल होते है, ठीक वैसे ही जहां मैंने काम किया वहां कुछ नियम थे जो मुझे अच्छे नहीं लगते थे। अब मुझे थोड़ा पब्लिकेशन की जानकारी मिल गई थी। तब मैंने सोचा क्यूं ना मेरा खुद का पब्लिकेशन चालू करूं? मैंने पब्लिकेशन खोला और उसका नाम मेरे मिशन SGSH पब्लिकेशन रखा। मुझे लगता था की इससे मेरा मिशन जल्दी आगे बढ़ेगा।
अब मैं एक बिजनेस की मालकिन बन चुकी थी। जहां से कुछ पैसे भी आ रहे थे। कुछ ही महीनों में, बहुत कम समय में मेरा पब्लिकेशन सारे लेखकों की खुशी बन गया था। जो हमारे ऑथर नहीं थे वो भी हमारी सराहना करते थे। गूगल, इंस्टाग्राम, हर सोशल मीडिया में SGSH पब्लिकेशन काफी अच्छा कर रहा था। लेकिन….
वो कहते है ना जब आप ऊपर चढ़ने वाले होते है तब आपका गिरना तो बनता है। और तब मुझे पता चला की मेरा एसजीएसएच मिशन अब बिज़नेस बन गया था। मेरा काम, नाम, समय सब अब बिज़नेस में लग गया था। और कई लोग इस चीज का फायदा उठाते थे। जब मैंने देखा एसजीएसएच मिशन अब बिज़नेस हो गया है और उसका लोग फायदा उठा रहे तब मैंने सोच लिया भले, अब तक कितनी भी मेहनत करी लेकिन अगर अभी नहीं बदला तो आगे मैं कभी चैन से नहीं रह पाऊंगी। इसलिए मैंने एसजीएसएच पब्लिकेशन से किताब राइटिंग पब्लिकेशन किया। मेरे लिए पब्लिकेशन का नाम बदलना आसान नहीं था लेकिन फिर भी मैंने बदला। कुछ महीनों तो थोड़ा अजीब लगा लेकिन एक बार की खुशी थी की अब मेरा मिशन और बिजनेस दोनों अलग था। वैसे तो किताब राइटिंग पब्लिकेशन भी काफी कम समय में बहुत अच्छा करने लगा और आज हमारे 99.99% लेखक खुश है। यही हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि है।
लेकिन पब्लिकेशन चलाना भी मेरे लिए आसान नहीं होता है, कई बार बंद करने का मन होता है और आज भी मेरा गुस्सा कुछ हद तक बचा है। जो कई बार मेरा काम बिगाड़ता है। लेकिन फिर भी सारे खुश है और सबसे ज्यादा खुश और संतुष्ट मैं हूं। आज कई लोग मुझसे सलाह लेते है और मुझे अपनी प्रेरणा मानते है।
अब तक आपने देखा होगा आत्महत्या से लेखक से संस्थापक बनने की कहानी। भले ही आज मेरा गुस्सा मेरी कमजोरी है लेकिन मेरा मिशन वो कमजोरी से बड़ा है। इसलिए मैं हमेशा एक बात बोलती हूं की आपका एक अच्छा विचार आपकी पूरी जिंदगी बदल सकता है। मेरा सिर्फ एक अच्छा विचार अच्छाई और खुशियाँ फैलाना है। उसने मेरी पूरी जिंदगी बदल दी। पहले मैं जिंदगी काट रही थी और आज मैं जिंदगी जी रही हूं।
यह कहानी कोई काल्पनिक नहीं है। जिससे किसीको थोड़ी देर का मोटिवेशन मिले, यह मेरी जीवनी है।
– सुश्री दिव्या त्रिवेदी
संस्थापिका किताब राइटिंग पब्लिकेशन्स
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