श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’
(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा – गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी, संस्मरण, आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – परिवर्तनशील सोच।)
☆ लघुकथा – परिवर्तनशील सोच ☆ श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ ☆
बिल्ली को खिड़की पर देखकर मुझे बड़ी चिढ़ जाती और गुस्सा भी आता था।
बचपन में मेरे पड़ोस में रहने वाली दादी की बात याद आ जाती कि बिल्ली कहती थी कि मेरे मालिक की आंख फूट जाए जिससे मैं सारा दूध पी सकूं कुत्ता बहुत वफादार होता है वह मालिक की उम्र लंबी करने की दुआ मांगता है इसलिए कुत्ते को रोटी दिया करो बेटा।
इस दादी मां की बात मुझे हमेशा याद रहती और मुझे पता नहीं क्यों बहुत गुस्सा आता था क्योंकि वह चूहा भी खाती थी। मैं उस पर पानी डालती और हमेशा भागती रहती थी वह भी मुझे बहुत गुस्से से देखती थी। ऐसा लगता था उसकी बड़ी-बड़ी आंखें मुझे खा जाएंगी।
मैंने कभी बिल्लियों को एक रोटी भी नहीं दी मन में एक अजीब सी घृणा सी थी। मैंने कभी उसे एक रोटी नहीं दी मुझे ऐसा लगता था कि यह बिल्ली रोज मुझे चिढ़ाने आती है। आज मुझे पता नहीं क्यों इसे देखकर बहुत दया आ रही है और इसकी म्याऊं म्याऊं में एक अजीब सा दर्द है। इसकी आंखों में आंसू भी है। रोटी बनाते-बनाते उसे बड़े ध्यान से देख रही थी। वह और दिन की अपेक्षा बहुत दुबली भी नजर आ रही थी। उसका पेट भी पिचका था और इस तरह रोटी को लालची नजरों से देख रही थी। उसे देखकर मुझे बहुत दया आई और मैंने उसे एक रोटी दे दी जिसे उसने तुरंत लपक कर एक क्षण में खा लिया। फिर मैंने उसे दूसरी रोटी दी उसे लेकर वह चली गई। सच में वक्त के साथ इंसान और उसकी सोच बदलती है समय बहुत बलवान होता है। वक्त के साथ सोच को भी परिवर्तनशील करना चाहिए।
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© श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’
जबलपुर, मध्य प्रदेश मो. 7000072079
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