श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “ राजनीति की नींबू रेस …“।)
अभी अभी # 277 ⇒ राजनीति की नींबू रेस … श्री प्रदीप शर्मा
आप मानें या ना मानें, लेकिन आजकल हमें हर पारंपरिक खेल में राजनीति की बू आने लगी है। छोटे थे, तब से गणेशोत्सव के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में म्यूजिकल रेस और नींबू रेस जैसी सामूहिक प्रतिस्पर्धाएं हुआ करती थी। बच्चे, बड़ों, स्त्री पुरुष सबका बड़ा प्रिय खेल हुआ करता था तब।
म्यूजिकल रेस को कुर्सी रेस भी कहते हैं। एक कुर्सियों का गोला बनाया जाता था, जितने प्रतियोगी, उनसे कुर्सी की एक मात्रा कम। लाउडस्पीकर पर कोई गीत अथवा धुन शुरु होती और लोग कुर्सियों के बाहर से चक्कर लगाना शुरू करते। अचानक आवाज के रूकते ही, जो जहां होता, अपने आसपास की कुर्सी फुर्ती से हथिया लेता। हर बार एक प्रतिस्पर्धी को निराशा हाथ लगती, क्योंकि हर बार एक एक कुर्सी कम कर दी जाती। अंत में नौबत यह आती कि आदमी दो और कुर्सी एक। जिसने हथिया ली, वह विजयी घोषित हो जाता। आजकल राजनीति में प्रतिस्पर्धा के अनुसार कुर्सियां बढ़ा घटा दी जाती है। लेकिन हाथ लगी कुर्सी भी भला कभी कोई छोड़ता है।।
एक होती थी, नींबू रेस, जो हम कभी नहीं खेल पाए। किसी ओलिंपिक इवेंट से कम नहीं होती थी यह नींबू रेस। आपको अपनी लाइन में ही दौड़ना पड़ता था, मुंह में एक चमचा और उस पर सवार होते थे नींबू महाराज। आपको सबसे आगे दौड़ना भी है और नींबू को रास्ते में गिरने से भी बचाना है। यानी संतुलन और गति दोनों को बनाए रखकर दौड़ना पड़ता था प्रतिस्पर्धी को।
खेल में किसी भी तरह की धांधली ना हो, इसलिए यह सुनिश्चित किया जाता था, कि चम्मच अथवा नीबू के साथ कोई छेड़खानी नहीं की गई हो। चम्मच और नींबू का आकार भी एक समान होता था, चम्मच अथवा नींबू के साथ क्रिकेट की गेंद के समान कोई टेंपरिंग नहीं। साफ सुथरा चम्मच और स्वस्थ ताजा नींबू।।
मुझे खुशी है कि राजनीति में आज भी नींबू रेस की यह स्वस्थ परम्परा कायम है। चमचों को मुंह लगाते हुए अपना ध्यान नींबू अर्थात् पद अथवा की दौड़ में निरंतर शामिल होना, चम्मच भी मुंह से लगा रहे और सफलता भी हाथ लगे, यह कमाल एक साधारण इंसान के बस का नहीं।
राजनीति में सफल व्यक्ति ही वह होता है जो अपनी उपलब्धियों में भी अपने चमचों को मुंह लगाए रखता है। थोड़ा भी संतुलन बिगड़ा और बाजी किसी और के हाथ में।।
हमारे प्रदेश के कमलनाथ ना तो ठीक से चम्मच ही पड़क पाए और ना ही नींबू रूपी सत्ता का संतुलन बना पाए। राजनीति कोई बच्चों की नींबू रेस नहीं।
चम्मच और नींबू दोनों से हाथ धोना पड़ा राजनीति के इस कच्चे खिलाड़ी को।
कई प्रांतों में नींबू रेस जैसी इवेंट प्रगति पर है। कई नेता भी सदल बल इस नीबू रेस में शामिल हो गए हैं। नीबू का संतुलन ही सत्ता का संतुलन है। रामझरोखे बैठकर देखते हैं, इन सबका क्या हश्र होता है।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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