श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “ओ चिड़िया…” ।)
जय प्रकाश के नवगीत # 42 ☆ ओ चिड़िया… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
ओ चिड़िया
आँगन मत झाँकना
दानों का हो गया अकाल
धूप के लिबासों में
झुलस रही छाँव
सूरज की हठधर्मी
ताप रहा गाँव
ओ चिड़िया
दिया नहीं बालना
बेच रहे रोशनी दलाल।
मेंड़ के मचानों पर
ठिठुरती सदी
व्यवस्थाओं की मारी
सूखती नदी
ओ चिड़िया
तटों को न लाँघना
धार खड़े करेगी सवाल।
अपनेपन का जंगल
रिश्तों के ठूँठ
अपने अपनों पर ही
चला रहे मूँठ
ओ चिड़िया
सिर जरा सँभालना
लोग रहे पगड़ियाँ उछाल।
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© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
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