प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित एक भावप्रवण रचना – “कृषि प्रधान है देश हमारा ..” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ ‘चारुचन्द्रिका’ से – कविता – “कृषि प्रधान है देश हमारा …” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
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कृषि प्रधान है देश हमारा हम सब भारतवासी
धर्म-कर्म के क्षेत्र अनेकों, ज्यों मथुरा औ’ काशी।
कई ऋतुएँ आ समय-समय पर सुन्दर इसे बनाती
फल सब्जी, अनाज भेदों सब झोली में भर जाती।
सूरज तपता यहाँ तेज तब होती धरती प्यारी
सभी एक से व्याकुल होते राही हो या संन्यासी।
आग बरसी, लू चलती है बहता बहुत पसीना
ठंडी जगह और पानी बिन मुश्किल होता जीना।
तब काले मेघों के सँग आ नभ में वर्षा रानी
लाती हवा फुहारों के संग बरसाती है पानी।
वर्षा के स्वागत में खुश हो पेड़ हरे हो जाते
पशु-पक्षी हर्षित होते नर-नारी हँसते गाते ।
खेत, बाग, वन सुन्दर सजते पहने चूनर धानी
चारों ओर नदी नालों में दिखता पानी-पानी ।
पावस की बूँदें दुनिया में नया रंग भर जाती
बहू-बेटियाँ खुश गाँवों में नित त्यौहार मनाती ।
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© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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