श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# सपने #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 166 ☆

☆ # सपने #

एक मज़दूर

छेनी हथौड़े से

तोड़ता रहता है पत्थर

उसकी पत्नी पास बैठी है

टूटी गिट्टी को

रखती है समेटकर

उसका बच्चा

साड़ी के झूले में

टंगा रहता है

पेड़ की डाल पर

वह स्त्री

दोनों को देखतीं हैं

कभी पति तो

कभी बच्चा

कहीं बैठ ना जाए उठकर

दोनों युगल लगें है

रोज की तरह

अपने काम में दिनभर

इस रोज़ी से, कमाई से

घर में चूल्हा जलता है

उन सबका पेट पलता है

दोपहर में

दोनों पति-पत्नी थककर

जब सुस्ताते है

तब भविष्य के बारे मे

सोचते जातें हैं

यह अपार्टमेंट बनते ही

हमें कहीं दूर जाना है

हमारा कहां स्थाई ठिकाना है

पत्नी बोली – सुनो जी!

हमारा बेटा

कब स्कूल जायेगा?

वह कैसे पढ़ पायेगा?

या सारा जीवन

हमारे जैसा ही

पत्थर तोड़ते ही बितायेगा ?

 

वह मजदूर

कुछ सोचते हुए

गमछे से

पसीना पोंछते हुए

बोला –

नहीं -?

मैं अपने बेटे को पढ़ाऊंगा

उसे इंजीनियर बनाऊंगा

वो भी ऐसी कालोनीज

अपार्टमेंट बनायेगा

अपना नाम कमायेगा

वह उठकर

जोर जोर से

पत्थर तोड़ने लगा

मन ही मन

कुछ जोड़ने लगा

उसकी आंखों में

अनगिनत सपने है

स्पष्ट हो या अस्पष्ट

पर उसके अपने है /

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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