श्री राजेन्द्र तिवारी
(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता ‘सामर्थ्य…’।)
☆ कविता – सामर्थ्य… ☆
बादल का एक टुकड़ा, बरसने के बाद,
लौटते हुए, मेरे आंगन के ऊपर रुक गया,
आंगन की मिट्टी को देखने लगा,
जो बारिश की उम्मीद लगाए बैठी थी,,
कि पानी की बूंदों से उसकी
जलन मिटेगी,
तप्त होकर सौंधी सौंधी महक से, वह भी महक जाएगी,
पर निराश भाव से वह तकती रही, बादल को,
क्या कहती,, बादल भी तो पुरुष था,
क्या जाने वो स्त्री की व्यथा,,
जलती देह की अगन की तपन,
तभी नम हवा ने आकर मिट्टी को सहलाया,
पुचकारा और कहा,और कहा,
निष्ठुर है ये,व्यथा न जानेगा,
मै बूंदों से कहूंगी,वो तुम्हारी तपन को जानेगी,
और तुमसे मिलकर सृजन करेंगी,उस बीज का, जो मै अपने साथ लाऊंगी,,
वो पेड़ बनेगा,
और फिर बाद ल उस पर बरसेगा, क्योंकि,
वह पेड़ भी पुरुष है,, वही समझेगा,,उसी को,,,
मिट्टी अपनी व्यथा,मजबूरी, परिस्थिति को जान गई,,
हवा से कहा, हां तुम बीज लाओ,
मै सृजन करूंगी, अपनी कोख से,
उस पेड़ का, जो सबको फल दे छाया दे,
और जो जवाब दे बादल के टुकड़े को,
कोई भी कार्य,परोपकार भाव से करो,
वृष्टि भी सम भाव से करो,,
हवा के सहारे न उड़ना पड़े,
इतना सामर्थ्य पैदा करो…
© श्री राजेन्द्र तिवारी
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