सुश्री इन्दिरा किसलय

☆ कविता – साकुरा…☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

 तुम्हें खिलते हुये देखना

जैसे रूप और उम्मीद की

एक एक पंखुड़ी पर

अपना नाम लिखना

उसे सहेजना

 

तुम झरते हो

बेपरवाह होकर

राहें मौसम अंबर

झीलें झरने हवा

तुमसे जलते होंगे

है ना

 

कुदरत के रंगों की झोली

कभी खाली नहीं होती

पर मनुष्य—-

जमीन पर बिछे हुये

फूलों के बीच से गुजरना तो है

पर कैसे

 

इतनी निर्दयता मुझसे

न होगी

तुम भी भरभराकर झरते हो

बेभान होकर खिलते हो

थोड़ा संभलकर

 खिला करो ना !!

💧🐣💧

©  सुश्री इंदिरा किसलय 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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