श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# सुबह की सुहानी डगर  #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 168 ☆

☆ # सुबह की सुहानी डगर #

रात का बीत रहा है

आखिरी पहर

आज बादलों में

छुपी हुई है सहर

*

कितने अहंकार में डूबा है तम

कितने मजबूर हो गए है हम

कितने सांसों में अटका है दम

ना जाने कब

किस पर टूटेगा कहर?

रात का बीत रहा है

आखिरी पहर

आज बादलों में

छुपी हुई है सहर

*

चांद तारों तक

फैला उसका साम्राज्य है

बहती हवाओं पर भी

उसका राज है

हर मुंडेर पर उसके

सिखाए बाज़ है

रात को हुक्म है

और कुछ देर ठहर?

रात का बीत रहा है

आखिरी पहर

आज बादलों में

छुपी हुई सहर

*

तम से पीड़ित

हर नर और नारी है

अफीम के नशे में

ग़ाफ़िल दुनिया सारी है

आज तुम्हारी तो

कल मेरी बारी है

कब टूटेगा नशा

कब जाएगा दिलों से यह डर

रात का बीत रहा है आखिरी पहर

आज बादलों में छुपी हुई है सहर

*

क्षितिज पर देखो

रात ने जुल्फें संवारीं है

नभ के भाल पर

लाल बिंदिया कंवारी है

सब कुछ शांत है पर

अंदर कोई चिंगारी है

कौन रोक सका है

सुबह की सुहानी डगर ?

रात का बीत रहा है आखिरी पहर

आज बादलों में छुपी हुई है सहर //

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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