श्री आशिष मुळे
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 38 ☆
☆ कविता ☆ “महामाया…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆
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क्या हो कैसी हो
कौन हो कहां हो
दिल से करीब
मगर हातों से
इतनी क्यों दूर हो
तुम बस एक सपना हो
जीत हो
शिकस्त हो
दिल का सुकून
या दिल जलाता
दर्द-ए-इश्क हो
तुम बस एक सपना हो
छोटीसी परी हो
परियों का नूर हो
हज़ार लफ्ज़ फेंकती
किसी मेहबूबा की
एक हसीन मुस्कान हो
तुम बस एक सपना हो
पानी में बसे आंसू हो
आंखों में बसा दर्या हो
दिल खौलता लावा
या उसी लावा से बनती
एक ऊंचीसी हस्ती हो
तुम बस एक सपना हो
पत्थरों में बसते लफ्ज़ हो
लफ़्ज़ों में छुपे पत्थर हो
अंधेरे मे रोशन
लफ़्ज़ों का अर्थ
या अर्थहीनता एक अर्थ हो
तुम बस एक सपना हो
भाव से खेलते नक्श हो
दिल से खेलता भाव हो
भाव का अभाव भी
अभाव का भाव भी
और भाव का भाव भी हो
तुम बस एक सपना हो
रंगो में भीगती होली हो
रंगों ने जलाई होली हो
हर एक रंग का भी
बेरंग का भी
एक रंगीन नजारा हो
तुम बस एक सपना हो
दिल में बसी ‘वोह‘ हो
जानवर मुझे बनाती हो
कभी बस एक स्त्री
कभी बस एक मां हो
इंसान जो मुझे बनाती हो
तुम एक महामाया हो
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© श्री आशिष मुळे
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈