श्री अरुण कुमार दुबे
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “कब वक़्त के थपेड़े, साहिल अ‘ता करेंगे…“)
कब वक़्त के थपेड़े, साहिल अ’ता करेंगे… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆
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जारी है जंग सबकी, रख धार ज़िन्दगीं की
है मौथरी बहुत ही, तलवार ज़िन्दगीं की
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मजबूर कोई इंसां मज़लूम कोई इंसां
हटती नहीं है सर से तलवार ज़िन्दगीं की
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इक रोज मौत आकर, ले जाएगी हमें भी
टूटेगी एक दिन ये, दीवार ज़िन्दगीं की
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किस्मत की पाँव जब भी, मंजिल के पास पहुँचे
हर बार आई आगे, दीवार ज़िन्दगीं की
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कब वक़्त के थपेड़े, साहिल अ‘ता करेंगे
थमने पे आएगी कब, तकरार ज़िन्दगीं की
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माँ बाप पा रहे हैं, बच्चों से तर्बियत अब
कैसी अजीब है ये, रफ़्तार ज़िन्दगीं की
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इल्मो अदब न आया, तर्ज़े सुखन न आयी
सहनी पड़ेगी हमको, फटकार ज़िन्दगीं की
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पज़मुर्दा हक़ शनासी, कल्बो ज़मीर बेहिस
लगती न कैसे भारी, दस्तार ज़िन्दगीं की
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मरते हुए बशर भी, जीने को बेकरां है
रहती नहीं है किसको, दरकार ज़िन्दगीं की
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हम भागकर कहाँ अब, जायेगें अपने सच से
सर पर रखी हुई, दस्तार ज़िन्दगीं की
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जब राहे-इश्क़ पर हो, तुम गामज़न अरुण तो
इक़रार ही समझना, इनकार ज़िन्दगीं की
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© श्री अरुण कुमार दुबे
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