(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय आलेख – लंदन से 4 – मिस्टर सोशल के फेसबुक अपडेट।
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 267 ☆
आलेख – लंदन से 4 – मिस्टर सोशल के फेसबुक अपडेट
मिस्टर सोशल सोते, जागते, खाते, पीते, मीटिंग में हों, या किसी के घर गए हों, टीवी देख रहे हों या वाशरूम में हों, कोई उनसे बात कर रहा हो या वे किसी से रूबरू हों, वे सदा मोबाइलमय ही रहते हैं । मोबाइल ही उनकी लेखनी है, मोबाइल ही बजरिए फेसबुक उनकी प्रदर्शनी है ।
गुड मॉर्निंग दोस्तों ( बिस्तर पर पड़े पड़े) उनका पहला अपडेट आया ।
सुबह नींद देर से खुली, सूरज पहले ही ऊग आया था, पड़ोसी के मुर्गे की बांग तो सुनाई नहीं दी शायद वह भी आज देर तक सोता रह गया, या क्या पता कल रात उसके जीवन का अंत हो गया हो।
टूथ पेस्ट खत्म हो गया है, आफिस में व्यस्तता इतनी है कि लाना ही भूल जाता हूं। आज तो बेलन चलाकर सीधे टूथ ब्रश पर बचा खुचा पेस्ट निकाल कर काम चला लिया है। शाम को याद से लाना होगा। ( ब्रश करने के बाद चाय पीते हुए )
नाश्ते में उबले अंडे, केवल सफेद भाग और स्प्राउट। आफ्टर आल हेल्थ इज वेल्थ । ( नाश्ते की टेबल से)
तैयार होने के बाद उन्होंने स्वयं को मोबाइल के सेल्फी मोड में निहारा, और एक क्लिक कर लिया । सेल्फी चेंप दी … रेडी फार आफिस ।
तीन मित्रों और बास के मिस्ड काल थे, बातें कर लीं । व्हाट्स एप भी चैक किया,संपर्क में बने रहना चाहिए। नो क्मयूनिकेशन गैप इन लाइफ ।
(आफिस जाते समय कार से)
टिंग की आवाज हुई एक मेल का नोटिफिकेशन था । उन्होंने बिना विलंब मेल खोला, अरे वाह प्रकाशक ने उनकी आगामी किताब के कवर पेज के तीन आप्शन भेजे थे । तुरंत उन्हें फेसबुक पर पोस्ट करते हुए लिखा । शुभ सूचना, नई किताब का कवर भेजा है प्रकाशक ने।आप ही बताएं किसे फाइनल करूं ?
इसके बाद जब तक कार चौराहे के लाल सिग्नल पर खड़ी रही उन्होंने फटाफट अपनी सुबह से की गई पोस्ट पर आए लाइक्स और कमेंट पर इमोजी के जरिए सबको रिस्पांस किया । सबसे ज्यादा कमेंट सेल्फी वाली पोस्ट पर थे । कुछ मातहत और संपर्क के लोग जिनके काम उनके पास अटके थे, ने गुड मॉर्निंग से लेकर अब तक के सारे पोस्ट लाइक किए थे । वे लोग जैसे उनके फेसबुक कास्ट का इंतजार ही करते रहते हैं कि कब वे कुछ पोस्ट करें और वे लाइक और कमेंट करें । शेयर करने जैसे पोस्ट उनके कम ही होते हैं, क्योंकि उन्हें जमाने से अधिक आत्म प्रवंचना पसंद है। वे सोशल प्लेटफार्म पर शिक्षा लेते नहीं देते हैं।
आफिस पहुंचने से पहले वे सर्फिंग करते हुए दस बीस अनजाने फेसबुक के दोस्तों को लाइक्स भी बांट देते हैं, जन्मदिन पर बधाई दे देते हैं । यह सोशल बोनी कहलाती है, क्योंकि सद्भावना प्रतिक्रिया में ये लोग भी उनकी पोस्ट लाइक्स करते ही हैं, जो पोस्ट की रीच को रिच कर उन्हें टेकसेवी बनाती है।
जब यह सब निपट गया, और फिर भी आफिस टाइम ट्रैफिक जाम के चलते उन्हें कार्यालय पहुंचने में विलंब लगा तो उन्होंने खिड़की से नजर बाहर घुमाई, और सीधे फेसबुक पर उनकी कविता जन्मी…
ट्रैफिक में रेंगती हुई कार
कार के अगले दाहिने कोने पर
ड्राइवर, स्टीयरिंग संभाले हुए
पिछले बाएं कोने पर
गद्देदार सीट पर मैं
विचारों की कश्मकश
लक्ष्य बड़े हैं
फेसबुक दोस्त महज पांच हजार हैं
और मुझे अपने विचार पहुंचाने हैं
सारी दुनियां में
हर हृदय तक
उन्हें लगा एक अच्छी कविता बन चुकी है। बिना देर किए उन्होंने रचना फेसबुक पर चिपका दी । साथ में एक तुरंत लिया हुआ ट्रैफिक का फोटो भी । कमेंट आने शुरू हो गए। जब त्रिवेंद्रम से सुश्री स्वामीनाथन का लाइक आया तो उन्हें आभास हो गया कि वास्तव में रचना बढ़िया बन गई है। उन्होंने रचना कापी की और एक भक्त संपादक को अखबार के रविवारीय परिशिष्ट के लिए, फोटो सहित मेल कर दी । साथ ही अपनी आगामी किताब के कलेवर के लिए भी डाक्स में सेव कर ली ।
आफिस आ गया था, वे मुस्कराते हुए कार से उतरे और सोशल मीडिया से रियल लाइफ में एंटर हो गए ।
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© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार
लंदन से
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