श्री आशिष मुळे
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 39 ☆
☆ कविता ☆ “इंसान…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆
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इंतज़ार मे दोनों बैठें है कब से
के मै कुछ बन जाऊ
कहता है मेरा ज़मीर मुझसे
इंसान हूँ इंसान ही रहने वाला हूँ
कहता है एक खामोशी से
के तू जानवर है
कहे दूसरा जोरों से
नहीं तू तो दिव्य है
वैसे तो मुझमें ये दोनों बसते है
लेकिन वो मै नहीं हूँ
बसता है विवेक भी मुझमें
कहता है हरपल के मै आदमी हूँ
मुझे जानवर बनना पड़ता है
दिव्य कुछ करने के लिए
कभी दिव्य भी बन जाता हूँ
बस रोजी रोटी के लिए
मगर ना मै जानवर हूँ
ना मै दिव्य हूँ
जानवरों की दिव्य दुनिया का
मै तो बस एक इंसान हूँ
मै तो बस एक इंसान हूँ
जानवरों को भी पालता हूँ
मै तो बस एक इंसान हूँ
राह दिव्यों को भी दिखाता हूँ
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© श्री आशिष मुळे
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈