श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “सीने में जलन…“।)
अभी अभी # 322 ⇒ सीने में जलन… श्री प्रदीप शर्मा
हर इंसान में एक शायर होता है, जो अकेलापन देख बाहर निकल आता है।कुछ बोल गुनगुना लेने से थोड़ी तसल्ली और सुकून मिल जाता है। बस इसी स्थिति में हम भी कुछ इस तरह मन बहला रहे थे ;
सीने में जलन, आंखों में तूफ़ान सा क्यूं है।
इस शहर में, हर शख्स
परेशान सा क्यूं है।।
अचानक कहीं से धर्मपत्नी प्रकट हो गईं। वे धार्मिक हैं, शेरो शायरी से उनका कोई वास्ता नहीं। आते से ही चिंतित स्वर में बोली, क्या हो गया है आपको, शहर की छोड़ो, आप अपनी बात करो। पूरे शहर में वायरल फैल रहा है, मेरा हाथ थामकर बोली, अरे आपका तो हाथ भी गर्म है, अभी डॉक्टर के पास चलो। अब पत्नी की चिंता को आप त्रियाहठ तो नहीं कह सकते। आखिर तूफान आ ही गया।
डॉक्टर के पास केवल मरीज ही जाता है। हम भी कतार में ही थे। अपना नंबर आया, डॉक्टर पहले आंख देखता है, फिर जबान बाहर करवाता है। पहले कलाई थामता है और फिर कान में यंत्र लगा लेता है।सांस भरने और छोड़ने की औपचारिकता के बाद दिल की धड़कन नापता है। बीपी भी चेक करता है। हमें भी सीने में जलन और अपनी परेशानी का कारण पता चल जाता है।।
वह दिन है और आज का दिन, हमने उस गीत को फिर कभी नहीं गुनगुनाया।लेकिन चोर चोरी से जाए, हेरा फेरी से नहीं जाए, एक बार फिर हम तलत साहब को दोहराते पकड़े गए ;
सीने में सुलगते हैं अरमां
आँखों में उदासी छाई है
ये आज तेरी दुनिया से हमें
तक़दीर कहाँ ले आई है
सीने में सुलगते हैं अरमां ..
पत्नी का ध्यान कहीं भी हो, उनके कान हमेशा हमारी ओर ही लगे रहते हैं। हमारी बहुत चिंता करती है वह। दौड़कर आई, क्या कह रहे थे आप ? इतनी उदासी, सीने का सुलगना तो ठीक, इस उम्र में तो आप तकदीर को भी कोसने लगे, हाय मेरी तो किस्मत ही खराब है। और वे अपनी किस्मत को मेरी खराब तबीयत से जोड़ लेती हैं। वे बहुत पजेसिव हैं, थोड़ी भी रिस्क नहीं लेना चाहती। मुंह पर नहीं बोली, लेकिन समझ गई, यह डिप्रेशन का मामला है।
लेकिन इस बार किसी न्यूरोलॉजिस्ट के पास जाने की नौबत नहीं आई क्योंकि उन्होंने गलती से यू ट्यूब पर तलत महमूद को सुन लिया।बस तब से ही भजन के अलावा उनकी भी शेरो शायरी में रुचि जाग्रत हो गई है। जब घर में दिल के दो बीमार हों, तो अच्छी दिल्लगी होती है।।
कुछ लोग इसे सीना कहते हैं तो कुछ छाती। यहीं कहीं बेचारा दिल भी है।सुना है, सीना फुलाने से छाती चौड़ी हो जाती है।सीने में सिर्फ जलन ही नहीं होती, कभी कभी यहां सांप भी लोटता है। हमें तो वैसे ही सांप से डर लगता है, ऐसी स्थिति में अगर कहीं सीने पर सांप लोट गया तो समझो हम भी हमेशा के लिए ही लेट गए।
कुछ लोग सीने पर पत्थर रख लेते हैं तो हमारे कुछ भाई लोग छाती पर मूंग दलने बैठ जाते हैं। हमारा तो यह सब सुन सुनकर दिल ही बैठ जाता है।।
वैसे हमारे दिल की बात हम सीने में ही छुपाकर रखना चाहते हैं, लेकिन बता दें, यह बात हमें फिर भी हजम नहीं हुई ;
कोई सीने के दिलवाला, कोई चाँदी के दिलवाला
शीशे का है मतवाले मेरा दिल
महफ़िल ये नहीं तेरी दीवाने कहीं चल ..
लेकिन आप कहीं भी चले जाएं, सीने का दर्द और छाती की जलन कम नहीं होने वाली। तलत साहब कितना सही कह गए हैं ;
जाएँ तो जाएँ कहाँ
समझेगा कौन यहाँ
दर्द भरे दिल की जुबाँ
रुह में ग़म, दिल में धुआँ
जाएँ तो जाएँ कहाँ…।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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