श्री कमलेश भारतीय
(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब) शिक्षा- एम ए हिंदी, बी एड, प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । ‘यादों की धरोहर’ हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह – ‘एक संवाददाता की डायरी’ को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से कथा संग्रह- महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)
☆ संस्मरण – मेरी यादों में जालंधर – भाग-12 – अपने पांव तले कभी आसमान मत रखना! ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆
(प्रत्येक शनिवार प्रस्तुत है – साप्ताहिक स्तम्भ – “मेरी यादों में जालंधर”)
अभी जालंधर ही जालंधर है मन में ! यादों की पगडंडियों पर चलता जा रहा हूँ, कभी आगे तो कभी पीछे ! चलता जा रहा है, यादों का करवां ! कभी किसी की याद आती है, तो कभी किसी की याद सताती है ! किसी शख्स को याद कर मन खुशियों से भर जाता है, तो किसी का जिक्र आने पर मन में कुछ कसैला सा भाव उपजता है ! मैं इस कसैलेपन को पूरी तरह छिटक कर, दूर फेंक कर उनकी अच्छी छवि गढ़ना चाहता हूँ और यह सवाल कौंध जाता है कि पुराने, परिपक्व रचनाकारों को अपने से पीछे आने आने वाले लोगों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए? क्या उन्हें नये रचनाकारों को सम्मान नहीं देना चाहिए ? नयी पौध को अपने स्नेह से सींचना नहीं चाहिए?
आज ऐसे ही आत्ममुग्धता से घिरे व्यक्तित्व मित्र सुरेश सेठ की याद ह़ो आई है ! इनका घर जालंधर के बस स्टैंड के बिल्कुल बायीं ओर पड़ता है ! बस से उतरते ही कदम उनके घर की ओर बढ़ जाते रहे हैं ! कभी जालंधर आकाशवाणी केंद्र या दूरदर्शन पर कार्यक्रम देने जाते समय इनके पास दो घड़ी बतिया कर जाता था । यह तो बाद में पता चला कि इनके बड़े भाई ही हैं, सुरेंद्र सेठ, जो बहुत ही शानदार एंकर थे दूरदर्शन पर ! यानी दोनों भाई अपने अपने क्षेत्र में पारंगत !
सुरेश सेठ की कुछ कहानियां आज भी मन में ताज़ा हैं ! ये कहानियां ‘ धर्मयुग’ और ‘ सारिका’ में प्रकाशित हुई थीं। इनमें एक कहानी राजनीतिक दलालों पर है, जो पहले अपनी खूबसूरत पत्नी को साथ लेकर बड़े नेताओं या उच्चाधिकारियों के पास लुभाने के लिए ले जाता है और पत्नी की खूबसूरती ढल जाने पर अपनी बेटी को ही दांव पर लगा देता है! उफ्फ!
दूसरी कहानी मध्यवर्गीय समाज की विवशताओं पर केंद्रित है! इसमें एक मध्यवर्गीय नवविवाहित जोड़ा यह सोचता ही रह जाता है कि काश ! वे भी हनीमून पर किसी पहाड़ पर जा पाते ! पारिवारिक जिम्मेदारियां इनको ज़िंदगी भर अपने बोझ तले बुरी तरह दबाये रहती हैं । आखिरकार पति इतना बीमार पड़ जाता है कि उसे पी जी आई में दाखिल करना पड़ता है, जहां प्राइवेट रूम में वह कांच की खिड़की के बाहर दो चिड़ियों को देखकर सोचता है- वन फार साॅरो एंड टू फार जाॅय! वह अपनी पत्नी को कहता है कि हम हनीमून पर तो नहीं जा पाये लेकिन यह रूम ऐसे ही है, जैसे कि हम किसी हिल स्टेशन पर आ गये हो़ंं !
अफसोस! इस बड़े रचनाकार का दिल कभी भी अपने पीछे आने वालों के प्रति प्रोत्साहन वाला नहीं बल्कि ईष्यालु भाव से भरा रहा, जिस कारण ये नयी पीढ़ी से संवाद नही कर पाये! यह बहुत बड़ी ट्रेजेडी है! अब बहुत देर हो चुकी है! वैसे ये अच्छे व्यंग्यकार और स्तम्भकार भी हैं ! जब कभी जालंधर जाता हूँ तो आज भी कदम इनके घर की ओर बढ़ जाते हैं! यह भाव, यह प्यार तो बना रहना चाहिए!
मित्रो ! यहीं रमेश बतरा फिर से याद हो आये हैं, जो अपने सहयात्री लेखकों को अपने साथ लेकर चलते रहे ओर चाहे ‘साहित्य निर्झर’ का संपादन हो या फिर ‘ सारिका’ या फिर ‘संडे मेल’ साप्ताहिक, सभी में अपने सहयात्रियों की रचनाएँ मांग कर प्रोत्साहित करते रहे! मैंने भी ‘दैनिक ट्रिब्यून’ या फिर हरियाणा ग्रंथ अकादमी क्षकी मासिक पत्रिका ‘कथा समय’ हो, नये रचनाकारों को मंच प्रदान करने की कोशिश की !
आज का यही सबक है कि किसी भी क्षेत्र में, जो वरिष्ठ हैं, उन्हैं नयी पीढ़ी को प्रोत्साहित करना चाहिए। इसीलिये यह कहीं पढ़ा हुआ याद आ रहा है कि नयी पीढ़ी को रास्ता दे दो, नही तो वह ज़ोरदार धक्का देकर अपना स्थान बना लेगी ! इसलिए अपनी छांव देनी चाहिए न कि ईर्ष्या !
बस! आज इतना कहकर बात के सिलसिले को थाम लूंगा कि
तुम ही तुम हो एक मुसाफिर, यह गुमान मत करना
अपने पांव तले कभी आसमान मत रखना!
क्रमशः….
© श्री कमलेश भारतीय
पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈