श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “रंगों सा छल ही जायेगा”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 171 ☆
☆ # कविता – “रंगों सा छल ही जायेगा” # ☆
यह रंगों का मौसम
रंगों सा छल ही जायेगा
सहेज लें इस वक्त को बंदे
वर्ना यह पल निकल ही जायेगा
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चाहे फौलाद सा तन हो
पाषाण सा कठोर मन हो
संघर्षों का भारी घन हो
वक्त के निर्मम थपेड़ों से
दहल ही जायेगा
यह रंगों का मौसम
रंगों सा छल ही जायेगा
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शब्दों में तेरे दम हो
सिने में तेरे ग़म हो
आंखें तेरी नम हो
तो राह का पत्थर भी
पिघल ही जायेगा
यह रंगों का मौसम
रंगों सा छल ही जायेगा
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चाहे दिनकर का नक्षत्रों पर राज हो
सृष्टि का सरताज हो
जीवन का आगाज हो
दिनकर दिन में प्रखर हो
पर संध्या को ढल ही जायेगा
यह रंगों का मौसम
रंगों सा छल ही जायेगा
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किसलिए यह अहंकार हो
द्वेष और तकरार हो
नफ़रत का बाजार हो
यह संकीर्णता का दौर
सब कुछ निगल ही जायेगा
यह रंगों का मौसम
रंगों सा छल ही जायेगा
सहेज लें इस वक्त को बंदे
वर्ना यह पल निकल ही जायेगा /
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© श्याम खापर्डे
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