डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं भावना के दोहे – मधुमास ।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 226 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे – मधुमास ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆
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चंचरीक की गूंज से, खिलती कली हजार।
अब तो तुम समझो मुझे, तुम मेरा संसार।।
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पतझर झरता शाख से, वस्त्र बदलना यार।
नई कली के रूप का हमें है इंतजार।।
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मन उपवन में खिल रहे, देखो पुष्प हजार।
धरा प्रफुल्लित देखकर, झरते हरसिंगार।।
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गुलशन के गुल देखकर छाई ग़ज़ब बहार।
आया फागुन झूम के, रंगों की बौछार ।।
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यश वैभव का गेह में, रहे हमेशा वास।
खुशियों का छाया रहे, जीवन में मधुमास।।
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© डॉ भावना शुक्ल
सहसंपादक… प्राची
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