आचार्य भगवत दुबे
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – तुम्हारी याद का सावन…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 49 – तुम्हारी याद का सावन… ☆ आचार्य भगवत दुबे
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करम तेरी निगाहों का जरा-सा जो इधर रहता
तो क्या, घर में मेरे, तनहाइयों का जानवर रहता
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वहाँ मौसम बदलते हों, यहाँ तो एक ही ऋतु है
तुम्हारी याद का सावन, बरसता सालभर रहता
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हवायें कब, संदेशा मौत का, लेकर के आ जायें
इसी से, घर के दरवाजे, हमेशा खोलकर रहता
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उसे, मैं भूल भी जाऊँ, मगर वह याद रखता है
मेरे हालात से, इक पल नहीं वह बेखबर रहता
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गिला, शिकवा-शिकायत, भूलकर भी मैं नहीं करता
भले, माने न वह, लेकिन मैं अपना मानकर रहता
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इशारा यदि जरा-सा भी, मुझे ‘आचार्य’ कर देते
तो मैं ताजिन्दगी जाकर उन्हीं के द्वार पर रहता
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© आचार्य भगवत दुबे
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈