श्री हरभगवान चावला
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री हरभगवान चावला जी की अब तक पांच कविता संग्रह प्रकाशित। कई स्तरीय पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। कथादेश द्वारा लघुकथा एवं कहानी के लिए पुरस्कृत । हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा श्रेष्ठ कृति सम्मान। प्राचार्य पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात स्वतंत्र लेखन।)
आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – याचनाएँ)
☆ लघुकथा – याचनाएँ ☆ श्री हरभगवान चावला ☆
वह औरत जो उस प्रसिद्ध मंदिर के बाहर बैठकर भीख माँगती थी, उसकी दोनों टाँगें नाकारा थीं और वह हथेलियों के बल पर घिसटती हुई चलती थी। मंदिर के बाहर लोगों की क़तारें होतीं। वह सोचती – इन खाते-पीते, आराम से चल-फिर रहे साबुत लोगों के पास सब कुछ तो है। आख़िर ये भगवान से और क्या माँगते होंगे? काश, वह इनके मन की याचना को सुन पाती! वह हैरान रह गई जब उसने पाया कि वह इन सब लोगों की मन ही मन भगवान से की गई याचनाओं को सुन सकती है। वह कुछ देर तक सुनती रही। फिर उसका चेहरा तमतमा गया। उसे लगा, उसके कान फट जायेंगे, वह पागल हो जायेगी। इतना लोभ, इतना द्वेष, इतनी निष्ठुरता! किसी ने अकूत दौलत की याचना की थी, किसी ने पड़ोसी की दुकान में आग लग जाने की कामना की थी, किसी ने अपने पिता के लिए मौत माँगी थी। कोई अपने मिलावट के धंधे में बरक्कत की याचना कर रहा था, कोई दवाइयों के कारख़ाने का मालिक महामारी के लिए याचना कर रहा था। ऐसी और भी कितनी याचनाएँ…। उसने कानों में उँगलियाँ ठूँस लीं और चिल्लाई- मुझे दी हुई यह अयाचित शक्ति वापस लो भगवान, मैं आधी-अधूरी जैसी भी हूँ, अच्छी हूँ।
© हरभगवान चावला
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≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈